For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ऊपरवाले, नीचेवाले" (लघुकथा)

"अब हमसें और न हो पेहे! दो-दो बोरे गेहूं तुम दोनों भाइयों और दो बोरे तुमाई बहना को भिजवा दये हते! अब मुंह फाड़के फिर आ गये गांव घूमवे के बहाने!"

"जे मत भूलो कि हमने अपने हिस्से के बड़े-बड़े बढ़िया खेत तुमें सस्ते में बेच दये हते! फसलों के ह़िस्से बिना मांगे हमें मिलते रहना चईये न! बड़े भाई हैं हम तुमाये; तुमाओ परिवार अकेले इते मजे करत रेहे का!"
"कौन ने कई हती कि अगल-बगल के शहरन में बस जाओ! पैसों से तो तुम औरन के मज़े हो रये हैं! हमारी मिहनत और हालात तुम कभऊं न समझ पेहो! सारी फसल तुम औरन में बंट जेहे, तो इते हम औरें हवा-पानी से पेट भर हैं का?"
"शुद्ध हवा-पानी, घी और खाना खा-खा के तो सांड़ हो रये तुम और तुमाई अनपढ़ औलादें! बहोत इतरान लगे हो!"
"औलाद पे मत जाओ! हमें मालूम है कि तुमाई हाई-फाई औलादें कहां का गुल खिला रईं हैं और तुम नौकरन के भरोसे कैसे जी रये हो! ... और सुन लो हमें पैसन की ज़रूरत है! खेत सूख रये! बारिश ढंग की नहीं होत सही वक़्त पे! .. अब हम औरें कछु और काम शुरू कर हैं इतई रहके!"
"का कर लै हो अब! खेती के अलावा आत-जात का है तुम लोगन खों!"
"हमें गंवार न समझो! ज़िला उद्योग विभाग और रोज़गार दफ़्तर वालन ने हमें बहोत से रास्ते बताये हैं! मुर्ग़ा-मुर्ग़ी पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन या गौ-पालन कछु न कछु हम औरें कर ही लैहें! लोन की जुगाड़ करवा दो या पैसे उधार दे दो हमें!"
"जानवरन को भी खाली हवा-पानी खिलाहो का! हाल देख लये हमने सूखे गाँव के! दम घुट रओ! पहले जैसी बात नहीं रही! हम तो कल ही वापसी करहें! तुमें हमारे शहर में ही बसने हो, तो बताओ!"
"न भैया न! हम तो पिताजी की बात मानहें! जितनी मिहनत-मशक्क़त और टेंशन शहर में होये, उत्ते में तो हम सभईं मिलके ई गांव को ही संवार देहें! हरियाली हो या खेती-बाड़ी! देश की ज़मीन और आसमान सभईं को माहौल हम लोगन के हाथ में है; देश को हमाई ज़ादा ज़रूरत है! नेता भी लौट के हमईरे पास आत हैं! धीरज वाले हैं हम औरें! तुमें जहां चैन मिले, उतई रहो!.. लेकिन हिस्सा-बांट की बात अब तो न करो! हिस्सा-बांट तो अब ऊपरवालो ही करहे या सरकार!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 514

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 13, 2018 at 8:48pm

मेरी इस रचना पटल पर समय देकर अपनी राय साझा करने और मुझे प्रोत्साहित करने हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया नीता कसार जी,  आदरणीय समर कबीर साहिब और आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'  साहिब। आजकल क्षेत्रीय भाषा में खड़ी बोली और अंग्रेज़ी के शब्द मिला कर स्थानीय लोग बोलने लगे हैं न, इसी लिए वैसे शब्द प्रयुक्त हो गये। बढ़िया सुझाव के लिए शुक्रिया।

Comment by नाथ सोनांचली on August 27, 2018 at 6:21pm

आद0 शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा गढ़ी आपने। इस प्रस्तुति पर मेरी बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by Nita Kasar on August 27, 2018 at 6:17pm

स्थानीय भाषाशैली पर आधारित सुंदर कथा ।बारिश की जगह बरसात ।हाईफाई की जगह ऊँचई पहुँच वाले ।संदेशप्रद कथा के लिये बधाई आद० शेख़ शहज़ाद  उस्मानी जी ।

Comment by Samar kabeer on August 27, 2018 at 4:48pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service