For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अँधेरे का डर (लघुकथा )


जब भी सुरेन्द्र बात करता हौसला उसकी बातों से अकसर झलकता, काम करवाने के लिए जब भी कोई उसके दफ्तर में आता उसी का हो कर रह जाता |
मुश्किल पलों में भी वह मजाक को साथ नहीं छोड़ने देता, और जिन्दगी का हिस्सा बना लिया |
जब सुरेन्द्र सफर में होता तो ऐसा कभी न होता कि सफर करते हुए कोई आकह्त महसूस होती हो उसे, वह तो साथ बैठे से ऐसी बात शुरू करता कि सफर खत्म होने तक वह  शख्स उसी का हो जाता |
मगर आज ऐसा नहीं था, बस उस के लिए अनजान सफर में जा रही थी, जिस पर वह सवार था |
जो कुछ उसने सुना था, इस लिए वह पास बैठे शख्स से बात करने से कन्नी कतरा रहा था|
मगर उसको ये बात तसल्ली देती कि आदमी जब अकेला हो तो अच्छा होता है, भीड़ का हिस्सा हो तो भीड़ उसे बुरा बना देती है |
“ये क्या बात हुई, अच्छा आदमी कैसे भीड़ में जा कर बुरा हो जाता है”, सुरेन्द्र फिर खुद से ही सवाल करता |
फिर हौसले के साथ खुद को कहा, "इस से बात तो हो सकती, जैसा मैं सोच रहा हूँ, अगर ये अकेला है तो अच्छा ही होगा" |
तभी अचानक ही उस ने सुरेन्द्र के विचारों की लड़ी को तोड़ते हुए कहा "लग रहा कि आप पहली बार इस तरफ आए हो"|
“हाँ” |
“क्या आप पहले यहाँ नहीं आना चाहते थे या आ नहीं सके, उसने फिर पूछा |
“हाँ, कह कर सुरेन्द्र चुप हो गया, मगर बातों का सिलसिला चल पढ़ा, जैसे बातें का दौर चल रहा सुरेन्द्र की सोच में था कुछ कुछ कम होना शुरू हो गया |
बस रुकी दोनों नीचे उतर कर चलने लगे, कोई लेने आ रहा है , रफीक ने पूछा|
सुरेन्द्र ने कहा, "कोई नहीं , अँधेरा होने लगा" |
"कहाँ जाना है",
सुरेन्द्र ने मौहला का नाम लिया, चलो में छोड़ देता हूँ अँधेरा हो गया है|
दोनों थ्री -वीलर में बैठ गए और थ्री – वीलर चल पढ़ा, सुरेन्द्र को लगा रौशनी अँधेरे के डर चीर आगे बढ़ रही है|

"मौलिक व अप्रकाशित"

  

Views: 359

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मोहन बेगोवाल on June 6, 2018 at 4:59pm

     

अँधेरे का डर

जब भी सुरेन्द्र बात करता हौसला उसकी बातों से अकसर झलकता, काम करवाने के लिए जब भी कोई उसके दफ्तर में आता उसी का हो कर रह जाता |
मुश्किल पलों में भी वह मजाक को साथ नहीं छोड़ने देता, और जिन्दगी का हिस्सा बना लिया |
जब सुरेन्द्र सफर में होता तो ऐसा कभी न होता कि सफर करते हुए कोई आकह्त महसूस होती हो उसे, वह तो साथ बैठे से ऐसी बात शुरू करता कि सफर खत्म होने तक वह  शख्स उसी का हो जाता |
मगर आज ऐसा नहीं था, जिस शहर में वो जा रहा था, कई रोज़ से वहाँ दहशत का माहौल था, उसे लगा कि आज ये बस किसी अनजान सफर को जा रही थी, जिस पर वह सवार था |
जिस तरह के दंगो के बारे उस ने मीडिया से देखा और सुना था, इस के बारे  वह पास बैठे शख्स से बात करने से कन्नी कतरा रहा था|
मगर उसको ये बात तसल्ली देती कि आदमी जब अकेला हो तो अच्छा होता है, भीड़ का हिस्सा हो तो भीड़ उसे बुरा बना देती है |
“ये क्या बात हुई, अच्छा आदमी कैसे भीड़ में जा कर बुरा हो जाता है”, सुरेन्द्र फिर खुद से ही सवाल करता |
फिर हौसले के साथ खुद को कहा, "इस से बात तो हो सकती, जैसा मैं सोच रहा हूँ, अगर ये अकेला है तो अच्छा ही होगा" | तभी अचानक ही उस ने सुरेन्द्र के विचारों की लड़ी को तोड़ते हुए कहा "लग रहा कि आप पहली बार इस तरफ आए हो"|
“हाँ” |
“क्या आप पहले यहाँ नहीं आना चाहते थे या आ नहीं सके, उसने फिर पूछा |
“हाँ, कह कर सुरेन्द्र चुप हो गया, मगर बातों का सिलसिला चल पढ़ा, जैसे बातें का दौर चल रहा सुरेन्द्र की सोच में डर कुछ कुछ कम होना शुरू हो गया |
बस रुकी दोनों नीचे उतर कर चलने लगे, कोई लेने आ रहा है , रफीक ने पूछा|
सुरेन्द्र ने कहा, "कोई नहीं , अँधेरा होने लगा" |
"कहाँ जाना है",
सुरेन्द्र ने मौहला का नाम लिया, चलो में छोड़ देता हूँ अँधेरा हो गया है|
दोनों थ्री -वीलर में बैठ गए और थ्री – वीलर चल पढ़ा, सुरेन्द्र को लगा रौशनी अँधेरे के डर चीर आगे बढ़ रही है|

 

Comment by Mahendra Kumar on June 6, 2018 at 10:11am

आदरणीय मोहन बेगोवाल जी, इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आपकी लघुकथा के सन्दर्भ में कुछ चीजें हैं जो मुझे स्पष्ट नहीं हो सकीं. 

1. //मगर आज ऐसा नहीं था, बस उस के लिए अनजान सफर में जा रही थी, जिस पर वह सवार था |// आज ऐसा क्या नहीं था?

2. //जो कुछ उसने सुना था, इस लिए वह पास बैठे शख्स से बात करने से कन्नी कतरा रहा था|// उसने क्या सुना था?

3. सुरेन्द्र को अँधेरे से क्यों डर लगता था? यह भी स्पष्ट नहीं है.

4. बिंदु संख्या 3 की वजह से शीर्षक भी स्पष्ट नहीं हो सका. 

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
6 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service