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गीत : कुम्हलाईए मत खिल खिल रहिये

कुम्ह्लाइए मत खिल-खिल रहिये !
खुश-खुश रहिये , हिलमिल रहिये !

बीत गया मनमोहक सपना 
खो गया दिलबर आपका अपना

कतराइये मत, शामिल रहिये 
हंसमुख रहिये, चुलबुल रहिये !

मीत सुहाना, सरस सुरीला 
छल गया स्वप्न दिखा रंगीला

पछताईये मत , चंचल रहिये 
घायल रहिये, सर्पिल रहिये !

प्रीत-प्रणय का खैल अनोखा 
मन लुभावना मीठा धोखा

पगलाइये मत, कातिल रहिये 
सज-धज रहिये ,झिलमिल रहिये !

ये जग झूठा, स्वप्न अनूठा 
साँस थमी, सपना ये टूटा

उकताईये मत, लहरिल रहिये 
पल पल, कल कल,छल छल रहिये !!

मौलिक/प्रतिलिप्याधिकार

नन्दकिशोर दुबे

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 9, 2018 at 5:10am

बहुत खूब..

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2018 at 11:49am

निराशा के दौर में सकारात्मक भाव से परिपूर्ण नव जागरण कराते बढ़िया गीत के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नंदकिशोर दुबे जी।

Comment by Samar kabeer on April 5, 2018 at 11:38am

जनाब नन्दकिशोर दुबे जी आदाब,गीत का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

गीत आपने किस विधान पर लिखा है,बता देते तो कुछ कहने में आसानी होती,तुकन्नता पहले तो "मिल" "खिल" रही बाद में 'चुलबुल" " चंचल" हो गई इस पर ग़ौर करें,रचना के साथ विधान लिखना इस मंच का नियम है जिससे नये सीखने वालों को सुविधा होती है ।

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