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कंटक ही कंटक हैं, जीवन के पथ में

गीत 

कंटक ही कंटक हैं, जीवन के पथ में !

प्राणों पर संकट है, काया के रथ में !

क्षण-क्षण यह चिंतन

जीवन बीहड़ वन !

इस वन में एकाकी

प्राणों का विचरण !

पीड़ा ही पीड़ा है, जीवन के अथ में !

प्राणों पर संकट है, काया के रथ में !

पग-पग पर संयम

अन्यथा समक्ष यम !

द्वन्द्वात्मक नर्तन हो

आजीवन छम-छम !

अमरता की मृत्यु है, साहस के श्लथ में !

प्राणों पर संकट है, काया के रथ में !

जन-जन में समता

ममता ही ममता !

जनहित में अर्पित हो

पौरुष और क्षमता !

जीवन की सार्थकता सफल मनोरथ में !

प्राणों पर संकट है, काया के रथ में !!

मौलिक/अप्रकाशित

नंदकिशोर दुबे

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Comment by rajesh kumari on March 4, 2018 at 1:42pm

बहुत सुन्दर गीत हुआ है आद० ननद किशोर दूबे जी हार्दिक बधाई आपको 

Comment by vijay nikore on March 3, 2018 at 2:16pm

सुन्दर रचना के लिए बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2018 at 11:08am

हार्दिक बधाई..बंधुवर

Comment by Mohammed Arif on March 2, 2018 at 10:57pm

आदरणीय किशोर कुमार दुबे जी आदाब,

                                 पीड़ा , शिकायत को बयाँ करता अच्छा गीत है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ने जिस तुकांतता की ओर इशारा किया है उस पर ध्यान दें ।

Comment by Samar kabeer on March 1, 2018 at 11:04pm

जनाब नन्द किशोर दुबे जी आदाब,बहुत उम्दा गीत लिखा है आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

क्या 'संयम' के साथ 'यम' की तुकान्तता सही है?

Comment by narendrasinh chauhan on March 1, 2018 at 10:32am

khub sundar rachna 

Comment by Shyam Narain Verma on February 28, 2018 at 8:06pm
बहूत ही उम्दा गीत, हार्दिक बधाई l सादर

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