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खुशियों का बँटवारा(लघुकथा )

खुशियों का बँटवारा

“पापा,बड़े कमरे में चलों “ मनीष ने मैच देख रहे अजीत गुप्ता का हाथ खींचते हुए कहा

“अरे चल रहा हूँ मेरे लाडले,इतनी उतावली क्या है !”

और कमरे में प्रवेश करते ही- सरप्राइज !

“क्यों पापा कैसी लगी डेकोरेशन !” मझली बेटी आनंदी ने पूछा

“एक्सीलेंट!”

“अभी एक और सरप्राइज है “ मिसीज अजीत ने चॉकलेट केक आगे बढ़ाते हुए कहा

“यार ! तुम भी बच्चों के साथ बच्ची बन रही हो |क्या यह उम्र है बर्थडे मनाने की ---केक काटने की—“

“खुशिया मनाने की कोई उम्र होती है क्या ---अब चलों जल्दी से केक काटों “मिसीज अजीत ने मचलते हुए कहा

“ठीक है ! पर माँ-पापा को तो बुला लो -----जा मनीष बुला ला दादा-दादी को –“

“रुकों मनीष ---क्या जरूरत है बुढे-बुढ़िया की –---क्या दे देंगे अब वो तुम्हें “

“यार वो मेरे माँ-बाप हैं ---उनकी दुआ ही बहुत बड़ी चीज़ है |”

“और हमारी मेहनत ? “ मिसीज अजीत ने दोनों बेटियों और अपनी तरफ़ ईशारा करते हुए कहा

“ठीक है ----जिसमें सरकार खुश !---आओं केक काटा जाए |” मिस्टर अजीत ने मिसीज का हाथ पकड़ते हुए कहा

फिर-“हैपी बर्थडे टू यू-हैपी बर्थ डे टू यू !”

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )

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Comment by Samar kabeer on March 13, 2018 at 10:24pm

जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 13, 2018 at 10:06pm

अच्छी लघुकथा है, लेकिन जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब के सुझावों पर अमल कीजिएगा जनाब सोमेश कुमार जी।

Comment by Mohammed Arif on March 13, 2018 at 12:45pm

आदरणीय सोमेश कुमार जी आदाब,

                     लघुकथा का बहुत बेहतरीन प्रयास । कुछ बातें साझा करना चाहूँगा:-

(1)  लघुकथा में थोड़ी हड़बड़ाहट  है । कथानक को आराम से आगे बढ़ाइए ।

(2)  वर्तनीगत ढेरों अशुद्धियाँ हैं । उन्हें सुधारें ।

(3)  कथानक आपने बहुत अच्छा चुना मगर ऐसे कथानक पर ढेरों लघुकथाएँ लिखीं जा चुकी है अत: कथानक में ताज़गी पैदा कीजिए ।

(4)  विराम चिन्हों के प्रयोग में भी सावधानी बरती गई है । सही विराम चिन्हों का चयन आवश्यक है ।

                               आशा है आप मेरी उक्त बातों से सहमत होंगे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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