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पर मोहब्बत---

वह आदमी जो अभी-अभी

मेरे जिस्म से खेल कर

बेपरवाह उघड़ के सोया है

और जिसके कर्कश खर्राटे

कानों में गर्म शीशे से चुभते है

और जो नींद में भी अक्सर

मेरी छातियों से खेलता है

सिर्फ मेरी बात करता है

मैं उससे नफ़रत तो नहीं करती

पर मोहब्बत ----------------

 

मेरी तकलीफ़ उसे बर्दाश्त नहीं

एक खाँसी भी उसकी साँस टाँग देती है

मेरे आँसू सलामत रहें इसलिए

वो प्याज काटने लगा है

रोटी भी वो गोल बना लेता है

कभी-कभी मेरी अनिच्छा पर वो मुझ से

अपनी पीठ मलवाता है तब

तुम्हारा चेहरा उस पीठ पर नज़र आता

मैं उसकी पीठ को नापसंद तो नहीं करती

पर तुम्हारा चेहरा--------

 

मैं अक्सर गलतियाँ करती हूँ

और वो हँसकर उन्हें ठीक करता है

मैं गुस्से में चीज़े तोड़ देती हूँ

वो चुपचाप नई चीज़े ले आता है

उक्ता गई हूँ इस आदमी के स्वभाव से

और दुखी हूँ अपने गिरे भाव से

जब कभी वो आदमी अकेले बैठकर रोने लगता है

तब मैं सोचने लगती हूँ तुम्हारे बारे में

अपने बारे में और इस आदमी के बारे में

जिससे मुझे नफरत तो नहीं है

पर मोहब्बत-----------

 सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )

 

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Comment

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Comment by somesh kumar on March 8, 2018 at 6:30pm

रचना पर गुणी मित्रों की वृहद दृष्टि पा लिखना सार्थक प्रतीत हुआ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 27, 2018 at 6:32am

बहुत खूब...

Comment by Samar kabeer on February 25, 2018 at 10:05pm

जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

Comment by somesh kumar on February 25, 2018 at 11:12am

रचना ko apna sneh dene k lie शुक्रिया भाई Mohammed Arif ji

Comment by Mohammed Arif on February 25, 2018 at 9:36am

आदरणीय सोमेश कुमार जी आदाब,

                   पर मोहब्बत की अनिच्छा को प्रकट करती बेहतरीन कविता के लिए हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

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