For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बीरबल की खिचड़ी(लघु कथा)

-कब फिरेंगे अपने दिन?
-फिर ही तो रहे हैं।सुबह से शाम,फिर बातें तमाम।
-अरे भइये!अच्छे दिन आनेवाले थे।सुना था कभी।
-सब दिन अच्छे होते हैं।सब ईश्वर प्रदत्त हैं।
-सो तो ठीक है,अकलू।पर यहाँ तो 'नून-तेल-तरकारी,पड़ रही है भारी।'
-ठीके बोलते हो ,बकलू।ई नयको बजटवा में तरकारी महंगी हुई है।और वनस्पति तेल भी।
-ऊपर से होरी आई है।रंग फीका हो गया भाई।
-सो तो है।
-अरे का खुसर-पुसर चल रहल बा रे तू दुनो में?' टकलू ने टिटकारी भरी।
-लो आ गया अपन टकलू।'जोरू न जांता,नींद आवे अच्छा।'
-रे जोरू के गुलामो! भऊजीअन के साड़ी धोवा लो तू सब।कपड़ो महंगाइल बा।
-आयँ',अकलू-बकलू चकराई-सी आवाज में एक साथ बोल पड़े।
-अरे आयँ का?सच में।पता कर लो सब।रँगले साड़ी पर रंग चढ़ी,नया ना भेंटी अबकी।तू सब धुनइब एह होली में।
-इ त बिना जोरू वाला सबके जमाना आ गइल',अकलू बोला।
-सच में रे अकलू',बकलू बड़बड़ाया।ए होगा,वो होगा ....कहा था,पर हुआ क्या?'
-अरे बुरबक सब! राल मत टपकाओ सब अबहियें से।खिचड़ी अभी पक रही है।सूँघो तो,हवा में सुगंध है,कि नहीं?टकलू दोनों को टरकाने के अंदाज में बोला।
-हवा में कब से बात उड़ रही है।तुझे सुगंध भी मिलने लगी?दोनों ने टकलू की चुटकी ली।
-धीरज रखो',टकलू ने टिटकारा।
-तो यह खिचड़ी कब तक पकेगी?
-सरकारी खिचड़ी जल्दी नहीं पकती,पर पकती जरूर है। 'बीरबल की खिचड़ी' जानते हो न तुमलोग?
-हाँ।
-तो फिर?
-ढ़ाढ़स रखो।पक जायेगी।भले दिखे,या न दिखे।
-मतलब?
-यानी बीरबल वाली कब पकी थी?
-पता नहीं।
-अरे यही पता करने तो बादशाह अकबर को सिंहासन छोड़कर बीरबल के पास आना पड़ा था।
-वो तो है।पर हम समझे नहीं। खिचड़ी पक जायेगी,पकी नहीं,बादशाह को सिंहासन छोड़कर जाना पड़ा था।यह सब क्या है?अकलू-बकलू मुँह बाये हुए टकलू से पूछ रहे थे।
-यानी कि ,'बीरबल की औलादो', खिचड़ी तुम ही पकाते आये हो,तुम ही पकाओगे,तुम ही खाओगे।खा भी रहे हो। जय रामजी की!' टकलू चल पड़ा।
अकलू-बकलू अब भी मुँह बाये खड़े हैं।
..

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 947

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on October 21, 2019 at 12:41pm

Comment by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 7:29pm

आद0 मनन जी सादर अभिवादन। अच्छा व्यंग कसा आपने लघुकथा में। इस प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Manan Kumar singh on February 5, 2018 at 7:08pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय शहजाद जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 5, 2018 at 6:34pm

 लेखनी कब तक चुप रहेगी। ग़ुबार शाब्दिक कर ही दिया न ! बेहतरीन कटाक्षपूर्ण विचारोत्तेजक सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।

Comment by Manan Kumar singh on February 5, 2018 at 3:56pm

आभार आपका मित्र।

Comment by Mohammed Arif on February 5, 2018 at 1:26pm

आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,

                         बहुत ही सामयिक लघुखथा । दर्द भी है , आक्रोश भी है और नये बजट के प्रति नीराशा का संचार भी । आज पूरा देश पूछ रहा है कि अच्छे दिन कब आएँगे ?  आख़िर क्यों अच्छे दिन के स्वप्न दिखाए । अच्छे दिन पता नहीं किस चिड़िया का नाम है ।नई सत्ता से काफी उम्मीदें थी मगर उम्मीद पर खरी उतरती नज़र नहीं आ रही है । हार्दिक बधाई इस सशक्त लघुकथा के लिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service