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सुंदरता का अहंकार

एक अहंकारी पुष्प

अपनी प्रसिद्धि पर इतरा रहा है,

भॅंवरों का दल भी,

उस पर मंडरा रहा है,

निश्चित ही वह,

राग-रंग-उन्माद में,

झूल गया है,

स्व-अस्तित्व का,

कारण ही भूल गया है,

तभी तो,

बार-बार अवहेलना,

कर रहा है,

उस माली की,

जिसने उसे सुंदरता के,

मुकाम तक पहुचाया,

संभवतः उसे ज्ञात नहीं,

बयारों ने भी,

करवट बदल ली है,

जो संकेत है,

बसंत की समाप्ति का। 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on December 19, 2017 at 5:13pm

जनाब मनोज कुमार जी आदाब,सुंदर कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'करवट बदल लिया है'--इस पंक्ति में 'करवट'स्त्रीलिंग है, इसलिये इस पंक्ति को यूँ लिखें "करवट बदल ली है"या "करवट बदली है" ।

Comment by Mohammed Arif on December 19, 2017 at 7:55am

आदरणीय मनोज कुमार जी आदाब,

                                     पुष्प को प्रतीक बनाकर इशारों ही इशारों में बहुत कुछ बयाँ कर दिया ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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