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"एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ"

2122 2122 2122

एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ।
मैं समय के साथ बेहतर हो गया हूँ।।

कल तलक अपना समझते थे मुझे जो।
उनकी ख़ातिर आज नश्तर हो गया हूँ।।

मैं बयां करता नहीं हूँ दर्द अपना।
सब समझते हैं कि पत्थर हो गया हूँ।।

ज़िन्दगी में हादसे ऐसे हुए कुछ।
मैं जरा सा तल्ख़ तेवर हो गया हूँ।।

जख़्म दिल के तो नहीं अब तक भरे हैं।
हां मगर पहले से बेहतर हो गया हूँ।।


सुरेन्द्र इंसान

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 30, 2018 at 12:15pm

आदरणीय सुरेन्द्र इंसान जी..बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है..सादर

Comment by surender insan on March 20, 2018 at 8:18pm

    बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय  नीलेश भाई जी। बहुत बहुत आभार जी।

Comment by surender insan on March 20, 2018 at 8:17pm

   बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय  नीरज भाई जी । बहुत बहुत आभार जी।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 20, 2018 at 8:22am

आ. सुरिंदर इंसान जी,
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है 
बधाई 

Comment by Neeraj Nishchal on February 13, 2018 at 9:50am

क्या बात है बेहद लाजवाब ग़ज़ल के लिए  बहुत बहुत मुबारकबाद

Comment by surender insan on January 12, 2018 at 2:09pm

    बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय बलराम  जी । बहुत बहुत आभार जी।

Comment by surender insan on January 12, 2018 at 2:02pm

 बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय आमोद जी । बहुत बहुत आभार जी।

Comment by Balram Dhakar on December 25, 2017 at 11:11am

बहुत बढ़िया ग़ज़ल। मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं, आदरणीय सुरेंद्र जी।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on December 21, 2017 at 6:54pm

WAHHH  

Comment by surender insan on December 18, 2017 at 9:06am

  बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी । बहुत बहुत आभार जी।

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