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क्यों की तुमने आत्महत्या

जब तुमने की होगी आत्महत्या,
तब कितना कठोर किया होगा मन,
कितनी सही होगी वेदना,
संभवतः तुम्हारे अंगों ने भी,
तुमसे कहा होगा कि,
‘एक बार फिर सोच लो‘,
परंतु तुमने निष्ठुरता का
प्रमाण देते हुए,
अनदेखा कर दिया होगा,
कदाचित तुमने यह भी
नहीं सोचा होगा कि,
तुम्हारे मृत शरीर को
देखकर अवस्थाहीन
हो जाएगी तुम्हारी ‘जननी‘,
जिसका अंश है तुम्हारा शरीर,
तब, चहुंदिशि होगी,
करूणा और क्रंदन
जो चीख-चीख कर
कह रहे होंगे-‘‘आखिर
क्यों की तुमने आत्महत्या‘‘।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Manoj kumar shrivastava on November 25, 2017 at 7:40am

आदरणीया रक्षिता जी आपकी बधाई सहर्ष स्वीकार करते हुए आपको  सादर कोटिशः आभार प्रेषित करता हूं।

Comment by रक्षिता सिंह on November 24, 2017 at 10:31pm
आदरणीय मनोज जी,
वास्तविक्ता से जुड़ी भावात्मक पंक्तियों की इस सुन्दर ह्रदयस्पर्शी रचना पर मेरी बधाई स्वीकार करें।
Comment by Manoj kumar shrivastava on November 22, 2017 at 1:06pm
आदरणीय समर कबीर जी, उत्साहवर्धन हेतु आपका कोटिशः आभार, आपका स्नेह बना रहे।
Comment by Samar kabeer on November 22, 2017 at 12:32pm
जनाब मनोज कुमार श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत उम्दा कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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