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कुछ मिठास पाने को .....संतोष

फ़ाइलुन मफ़ाईलुन फाइलुन मफ़ाईलुन

कुछ मिठास पाने को तल्खियाँ ज़रूरी हैं
क़ुर्ब के लिए जैसे दूरियाँ ज़रूरी हैं

सिर्फ़ रोने धोने से दिल न उनका पिघलेगा
साथ अश्क बारी के सिसकियाँ ज़रूरी हैं

तैर कर तो दरया को पार कर नहीं सकते
इसके वास्ते यारो किश्तियाँ ज़रूरी हैं

देख सूखी धरती में फ़स्ल उग नहीं सकती
बारिशों के मौसम में बदलियाँ ज़रूरी हैं

जब मकां बनाओ तो ध्यान ये भी रख लेना
धूप के लिए कुछ तो खिड़कियाँ ज़रूरी हैं
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Samar kabeer on November 20, 2017 at 2:22pm
जनाब संतोष जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करे ।
आख़री शैर के सानी मिसरे में एक शब्द छूट गया है,देख लीजियेग ।
Comment by Mohammed Arif on November 20, 2017 at 8:02am
सिर्फ़ रोने धोने से दिल न उनका पिघलेगा
साथ अश्क बारी के सिसकियाँ ज़रूरी हैं बहुत ख़ूब! बहुत ख़ूब ! मज़ा आ गया ।
हर शे'र माक़ूल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 19, 2017 at 3:38pm
सभी अशआर में ख़ास विचारोत्तेजक बात कही है आपने। हार्दिक बधाई आदरणीय संतोष खिरवड़कर जी।

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