For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल धड़कता था जिस अजनबी के लिए

*212 212 212 212*

हो गया ख़ास वह, ज़िंदगी के लिए।
दिल धड़कता था' जिस, अज़नबी के लिए।।

दूर तुम से रहा, आज तक मैं सनम,
हूँ ख़तावार उस, बेबसी के लिए।।

जान देकर तुझे, जान जाता अगर,
जान जीता नहीं, मयकशी के लिए।।

देख चहरा तिरा, चाँद शरमा गया,
बन गई शम'अ तू, तीरगी के लिए।।

मुझको' रब की कई, नेमतें मिल गईं,
सर झुकाया सदा, बंदगी के लिए।।

बिन तिरे एक पल, मुझको' जीना नहीं,
दिलनशीं चाहिए, दिल्लगी के लिए।।


फ़र्ज़ बाकी अगर, एक भी रह गया,
'दीप' काबिल नहीं, खुदकुशी के लिए।।

-प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप'

मौलिक अप्रकाशित

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 16, 2017 at 5:32pm
आ० श्याम नारायण वर्मा जी! अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी पाकर धन्य हुआ।
Comment by Samar kabeer on November 16, 2017 at 5:16pm
जनाब 'दीप'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on November 16, 2017 at 12:00pm
बहूत उम्दा हार्दिक बधाई l
Comment by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 15, 2017 at 8:24pm
आद० कालीपद प्रसाद मण्डल जी!

आपके द्वारा की गई सराहना हेतु धन्यवाद।

आपकी दृष्टि ग़ज़ल पर पड़ी, ग़ज़ल धन्य हो गई।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 15, 2017 at 7:56pm

आ प्रदीप कुमार पाण्डेय जी , बहुत बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें 

Comment by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 15, 2017 at 6:24pm
ज़नाब सलीम रज़ा साहिब!

ग़ज़ल में शिरकत-ओ-हौसला आफ्ज़ाई के लिए मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 4:16pm
प्रदीप कुमार पांडेय जी,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service