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ग़ज़ल - इश्क में हो खुमार कुछ तो सही

बह्र - फाइलातुन मफाइलुन फैलुन
2122 1212 112 / 22
इश्क में हो खुमार कुछ तो सही।
उसमें आये निखार कुछ तो सही।

दर्देदिल का मज़ा है तब असली,
तीर हो दिल के पार कुछ तो सही।

हो भले झूठ मूठ का लेकिन,
उनसे हो प्यार वार कुछ तो सही।

आज फिर याद उनकी आई है,
दिल हुआ बेकरार कुछ तो सही।

बेवफाई हो जिसकी रग रग में,
वो भी हो शर्मसार कुछ तो सही।

जिन्दगी सौंप दूँ उसे लेकिन,
उसपे हो ऐतबार कुछ तो सही।

इश्क का भूत दोस्तो उस पर,
आजकल है सवार कुछ तो सही।

मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

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Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 26, 2017 at 5:19pm
आदरणीय डा.आसुतोष मिश्रा जी ग़ज़ल सराहना के लिये सादर धन्यवाद।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 26, 2017 at 4:46pm

आदरणीय राम अवध जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई सदर

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 25, 2017 at 10:17am
आदरणीय महेन्द्र कुमार जी सादर आभार ग़ज़ल सराहना के लिये।
Comment by Mahendra Kumar on October 25, 2017 at 8:40am

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है आ. राम अवध जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 24, 2017 at 9:23am
आदरणीय डा. छोटेलाल सिंह जी,
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ग़ज़ल सराहना के लिये।
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 24, 2017 at 7:36am
आदरणीय आपकी गजल को मैंने पढ़ी ,गजल की हर पंक्तियां लाजबाब हैं, उम्दा भाव के साथ एक बेहतरीन गजल हुई इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 23, 2017 at 9:17pm
आदरणीय कबीर साहब जी बहुत बहुत शुक्रिया हौसला बढ़ाने के लिये।
Comment by Samar kabeer on October 23, 2017 at 8:38pm
जनाब राम अवध जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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