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कौन किस वक्त क़ौल से अपने
हट के फिर जायेगा भरोसा क्या ?
कब ये आकाश टूटकर मेरे
सर पे गिर जायेगा भरोसा क्या ?

दोस्ती को निबाहने वाले
हों तो इतिहास में ही जिन्दा हों
आज के दौर का कोई बन्दा
कब मुकर जायेगा भरोसा क्या ?

प्यार की बात, साथ जन्मों का
बोलना तो सरल मगर प्यारे
प्यार का फूल किस घटी,किस पल

झर बिखर जायेगा भरोसा क्या ?

चंद जुमले उछाल कर तुम तो
अपने मित्रों के सर ही चढ़ बैठे
याद रखियेगा, जो इधर आया

कल किधर जायेगा भरोसा क्या ?

बुद्धिजीवी अगर कोई होगा
व्यक्त होना है उसकी मजबूरी
सोच विपरीत मानकर ज़ालिम

कत्ल कर जायेगा भरोसा क्या ?

ज़िन्दगी की यहाँ सुनिश्चितता
हमने देखी नहीं कभी यारों
कौन ज़िन्दा रहेगा किस पल तक

कौन मर जायेगा भरोसा क्या ?

मौलिक व अप्रकाशित ---नन्दकिशोर दुबे

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Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on November 2, 2017 at 4:53pm
आदरणीय नन्दकिशोर जी एक खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकारें
Comment by SALIM RAZA REWA on October 24, 2017 at 12:54pm
आ. ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई
Comment by Samar kabeer on October 23, 2017 at 5:50pm
जनाब नन्द किशोर दुबे जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
कुछ टंकण त्रुटियाँ देख लें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 22, 2017 at 8:40pm

आदरणीय , भरोसा पर बेहतरीन रचना हुई है  | बधाई स्वीकारें आदरणीय |

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 21, 2017 at 4:57pm
आदरणीय नन्दकिशोर जी एक खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई
Comment by Mohammed Arif on October 21, 2017 at 7:44am
आदरणीय नंदकिशोर जी आदाब,भरोसे को परिभाषित करती बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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