For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रकाश को काटते नभोचुम्बी पहाड़

अब हुआ अब हुआ अँधेरा-आसमान ...

अनउगा दिन हो यहाँ, या हो अनहुई रात

किसी भी समय स्नेह की आत्मा की दरगाह

दीवारों के सुराख़ों में से बुलाती है मुझको

और मैं आदतन चला आता हूँ तत्पर यहाँ

पर आते ही आमने-सामने सुनता हूँ आवाज़ें

इस नए निज-सर्जित अकल्पनीय एकान्त में

अनबूझी नई वास्तविकताओं के फ़लसफ़ों में

और ऐसे में अपना ही सामना नहीं कर पाता

झट किसी दु:स्वप्न से जागी, भागती, हाँफती

लौट आती है भीषण वेदना पूछने दु:खांत प्रश्न

प्रकाश को काटते  गूंगे अवाक खड़े  पहाड़ से

भीतर फिर से फैल रहे  तनाव के आसमान से 

प्रलय...

चुप है नभोचुम्बी पहाड़

चुप है गंभीर अँधेरा-आसमान

           ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 936

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 31, 2017 at 7:18pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय फूल सिहं जी।

Comment by PHOOL SINGH on August 31, 2017 at 4:07pm

बेहतरीन रचना

Comment by vijay nikore on August 28, 2017 at 2:04pm

//अपने अन्तेर्मन के द्वन्द को खुले गगन के नीचे दिन और रात के बीच , सुंदर और आकर्षित बिम्बों का इस्तमाल किया है//

इस सुन्दर भाव से मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी।

Comment by vijay nikore on August 27, 2017 at 5:16pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र नरेन्द्रसिंह जी।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 27, 2017 at 4:46pm

अपने अन्तेर्मन के द्वन्द को खुले गगन के नीचे दिन और रात के बीच , सुंदर और आकर्षित बिम्बों का इस्तमाल किया है आदरणीय | बहुत सुंदर रचना हुई है | हार्दिक बधाई आपको |

Comment by narendrasinh chauhan on August 26, 2017 at 5:23pm

शानदार रचना 

Comment by vijay nikore on August 24, 2017 at 11:59pm

 रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र शेख शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 24, 2017 at 7:08pm
आत्मा जिनकी मृतप्राय हो गई है, तनाव के आसमान जहां हैं... आत्मावलोकन की जहां ज़रूरत है... ! विचारोत्तेजक व चिंतन मनन करने को प्रेरित करती बेहतरीन रचना के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोल जी।
Comment by vijay nikore on August 24, 2017 at 5:13pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र गिरिराज जी ।

Comment by vijay nikore on August 24, 2017 at 5:12pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र तस्दीक जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service