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पारसाई ही मेरी दौलत है (ग़ज़ल)

2122 1212 22

जो ये लम्हा उदास है तो है
वो कहीं आस-पास है तो है

पैरहन जिस्म पर हज़ारों हैं
रूह गर बेलिबास है तो है

तीरगी हिज्र की है आंखों में
दिल में लेकिन उजास है तो है

पारसाई ही मेरी दौलत है
छल-कपट तेरे पास है तो है

क्यों न मिट जाए ग़म की कड़ुवाहट
आंसुओं में मिठास है तो है

इश्क़ में कोई मोज़िजा होगा
दिल को अब भी ये आस है तो है

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जयनित कुमार मेहता on August 28, 2017 at 8:31pm
आदरणीय डॉ० आशुतोष मिश्रा जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक साधुवाद आपको,सादर।
Comment by जयनित कुमार मेहता on August 28, 2017 at 8:30pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी बहुत-बहुत आभारी हूं आपका।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 28, 2017 at 12:55pm
जनाब जैनित कुमार साहिब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें, सही शब्द "मोजिज़ा"है
Comment by Samar kabeer on June 27, 2017 at 2:25pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 26, 2017 at 11:07pm
शानदार ग़ज़ल भाई जयनित जी रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें
Comment by Mohammed Arif on June 25, 2017 at 6:31pm
आदरणीय जयनित कुमार जी आदाब, बहुत ही शानदार ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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