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मात्रिक छंद आधारित एक गीतिका

 

स्वीट कभी नमकीन, मुहब्बत होती है

जग में बहुत हसीन, मुहब्बत होती है

 

थोड़ा  थोड़ा  त्याग, तपस्या हो  थोड़ी,

फिर न कभी ग़मगीन, मुहब्बत होती है

 

चढ़ती है परवान, नाम दुनिया में होता,

जितनी  भी  प्राचीन, मुहब्बत होती है

 

होते हैं ठेकेदार, जहाँ पर जाति धर्म के

उनके  लिए  तौहीन,  मुहब्बत होती है

कहीं न जाए टूट, सँभाले रखना तुम

डोरी  एक महीन, मुहब्बत  होती है

“मौलिक एवं अप्रकाशित”

 

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 15, 2017 at 11:01am
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' 1 जी आपकी हौसलाफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 14, 2017 at 11:12pm
वाह क्या खूब मुहब्बत का वर्णन किया है..बहुतखूब
Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 14, 2017 at 5:07pm

 आदरणीय Sushil Sarna जी आपकी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Sushil Sarna on June 14, 2017 at 1:56pm

कहीं न जाए टूट, सँभाले रखना तुम
डोरी एक महीन, मुहब्बत होती है... वाह आदरणीय बसंत कुमार जी वाह ... बहुत ही सुंदर मुहब्बत की दास्ताँ कह गए ,थे कहाँ हम और कहाँ रहे गए ... इस शानदार गीतिका के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 14, 2017 at 1:31pm

आदरणीय narendrasinh chauhan जी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार आपका 

Comment by narendrasinh chauhan on June 14, 2017 at 1:00pm

सुन्दर रचना 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 14, 2017 at 10:16am

आदरणीय BAIJNATH SHARMA'MINTU' जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on June 13, 2017 at 9:34pm

आदरणीय बसंत साहेब ...बहुत खूब,,,,बधाई स्वीकार करें 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 13, 2017 at 9:15pm

हौसलाअफजाई केलिए दिल से शुक्रिया आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी आपका 

Comment by Mohammed Arif on June 13, 2017 at 6:28pm
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजन आपनी राय देंगे ।

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