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गजल(कुर्सी के हाथ हुए पीले)

22 22 22 22
***********
कुर्सी के हाथ हुए पीले
साहब जी अब पड़ते ढ़ीले।1

पानी उतरा जाता उनका
दीख रहे टीले ही टीले।2

बिकते आये घोड़े माफिक
रंग रहे काफी चटकीले।3

याद सताती कुर्सी की तो
हो जाते हैं खूब हठीले।4

ढूँढ रहे वे रोज सनद ही
उम्मीद बँधे तो हैं फुर्तीले।5

कुर्सी ढ़ाढ़स देती,कहती-
पाँच बरस कैसे भी जी ले।6

रक्त पिये जायेगा कितना
थोड़ा-थोड़ा आँसू पी ले।7

अँधियारे में वस्त्र फटा है
उजियारे में अब तो सी ले।8

कितना और उछालेगा तू
अंग हुए हैं पंकिल,गीले।9

दाग नहीं धुलता दामन का
निर्मल जल अब कितना लीले?10

खूब रहीं गुलजार फिजाएँ,
शुष्क हवाओं का रस भी ले।11
मौलिक व अप्रकाशित@

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Comment by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 2:49pm
आदरणीय आरिफ भाई,मैं मनन हूँ।
Comment by Mohammed Arif on May 8, 2017 at 12:54pm
आदरणीय नीलेश जी आदाब, छोटी बह्र की बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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