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मेरे भीतर की कविता

मेरे भीतर की कविता
अक्सर छटपटाती है
शब्दों के अंकुर
भावों की विनीत ज़मीन पर
अंकुरित होना चाहते हैं
ना जाने क्यों वे
अर्थ नहीं उपजा पाते हैं
मेरे भीतर की कविता फिर भी
जाकर संवाद करती है
सड़क किनारे बैठे
उस मोची पर जो
फटे जूते सी रहा है
बंगले की उस मेम साहिबा पर
जो अपना बचा फास्ट फुड
डस्टबिन में फेंककर
ज़ोर से गेट बंद करके
अंदर चली जाती है
लेकिन
अनुभूतियाँ ज़ोर मारती है
पछाड़े खाकर गिर जाती है
हृदय की धड़कन पर
ना जाने क्यों मैं
एक अच्छी कविता
नहीं लिख पाता हूँ
मैं शब्दों की सच्चाई का अपराधी हूँ ।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Mohammed Arif on June 3, 2017 at 8:24pm
रचना को मान देने का हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश कुमारजी ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 3, 2017 at 9:56am
संवेदनाओं से परिपूर्ण रचना आदरणीय..हार्दिक बधाई
Comment by Mohammed Arif on June 3, 2017 at 9:38am
आदरणीय महेंद्र कुमार जी रचना को मान देने का बहुत-बहुत आभार ।
Comment by Mahendra Kumar on June 3, 2017 at 9:13am

//ना जाने क्यों मैं एक अच्छी कविता नहीं लिख पाता हूँ// ये शब्द मुझे मेरे बहुत क़रीब लगे. इस बढ़िया कविता के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ सर. सादर.

Comment by Mohammed Arif on May 20, 2017 at 9:00pm
आदरणीया प्रतीभा पांडे जी रचना की सराहना और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया ।
Comment by pratibha pande on May 20, 2017 at 2:03pm

  वाह  बहुत सुन्दर आदरणीय  ...एक एक शब्द अपने अन्दर ढेरों प्रश्न लिए  जो हरबार अनुत्तरित ही रहते हैं  .. हार्दिक बधाई  इस भावपूर्ण   विचारोत्तोजक सृजन के लिए 

Comment by Mohammed Arif on May 10, 2017 at 8:08am
रचना को मान देने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया कल्पना भट्ट जी ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 26, 2017 at 10:26pm
बहुत ही संवेदनशील भावपूर्ण रचना हुई है जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब । हार्दिक बधाई ।
Comment by Mohammed Arif on April 21, 2017 at 4:35pm
रचना को मान देने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय विजय निकोरे जी ।
Comment by vijay nikore on April 21, 2017 at 3:24pm

बहुत ही संवेदनशील भाव । सुन्दर शब्द-गुंथन से सजी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय आरिफ़ भाई।

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