For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-नूर की - इस तरह हर इक गुनह का सामना करना पड़ा,

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 
.
इस तरह हर इक गुनह का सामना करना पड़ा,
हश्र में ख़ुद के किये पे तब्सिरा करना पड़ा.
.
सुल्ह फिर अपने ही दिल से यूँ हमें करनी पड़ी,
फ़ैसले को टालने का फ़ैसला करना पड़ा. 
.
क़ामयाबी की ख़ुशी में चीखता है इक मलाल,
सोच कर निकले थे क्या कुछ और क्या करना पड़ा.
.
एक मुद्दत से कई चेहरे थे आँखों में असीर,
आँसुओं की शक्ल में सब को रिहा करना पड़ा.
.
झूठ के नक्क़ारखाने में बला का शोर है,
सच की शहनाई को सुन कर अनसुना करना पड़ा.
.
आ गया था एक बार उस की तिलस्मी बातों में, 
ज़ह’न को फिर उम्र भर दिल का कहा करना पड़ा. 
.
इन की ख्वाहिश हम न समझेंगे तो फिर समझेगा कौन
पाँओं को काँटो की ख़ातिर बरहना करना पड़ा.
.
जब सभी पत्थर ख़ुदा होने पे आमादा मिले,

“नूर” ख़ुद को पत्थरों में आइना करना पड़ा.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 946

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2017 at 10:50am

एक मुद्दत से कई चेहरे थे आँखों में असीर, 
आँसुओं की शक्ल में सब को रिहा करना पड़ा. -------क्या कहने जबरदस्त कहन 

जब सभी पत्थर ख़ुदा होने पे आमादा मिले, 
“नूर” ख़ुद को पत्थरों में आइना करना पड़ा.-----वाह्ह्ह्हह्ह 

वैसे सभी शेर बढ़िया हुए किन्तु इन दो को तो कई बार पढ़ चुकी हूँ 

इस शानदार ग़ज़ल के लिए दिल से दाद क़ुबूल करें नीलेश भैया 
.

.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2017 at 8:18am

शुक्रिया आ. अनुराग जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2017 at 8:18am

शुक्रिया आ. तस्दीक़ साहब 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 5, 2017 at 10:15pm

मुहतरम जनाब नीलेश साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद
क़ुबूल फरमाएँ ---

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 5, 2017 at 10:15pm

शुक्रिया आ. समर सर ...

Comment by Samar kabeer on April 5, 2017 at 6:17pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,बहुत उम्दा और मुरस्सा ग़ज़ल कही आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 5, 2017 at 1:37pm

आ. गुरप्रीत जी....
धन्यवाद ...
आप पुरानी ग़ज़लें पढ़ रहे हैं तो उन में यदि कोई कमी लगे तो अवश्य बतायें... मुझे ख़ुशी होगी क्यूँ की सीखने की  प्रक्रिया में   गलतियाँ होंना सामान्य बात  है .
आभार 

Comment by Gurpreet Singh jammu on April 5, 2017 at 1:31pm

आदरणीय नीलेश जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है..

एक मुद्दत से कई चेहरे थे आँखों में असीर,
आँसुओं की शक्ल में सब को रिहा करना पड़ा.

वाह वाह क्या बात है सर,, बाकी अशआर लाजवाब भी हैं..

नीलेश सर जी आज कल आप की ओ बी ओ पर पुरानी ग़ज़लें पढ़ रहा हूँ..खूब मज़ा आ रहा है... हरेक ग़ज़ल पर अपनी ग़ज़ल कहने को मन ककर रहा है..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service