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(1)

 

(भ्रूण हत्या)

 

जैसे बेटा पैदा होना, इक वरदान कहा,

घर में न बेटी होना, एक बड़ा श्राप है !

 

होती न जो बेटियां तो, होते कैसे बेटे भला

इन्ही की वजह से तो, शिवा है - प्रताप है !

 

पैदा ही न होने देना, कोख में ही मार देना,

हर मज़हब में ये, घोर महापाप है !

 

महामृत्युंजय सम, वंश के लिए जो बेटा,

उसी तरह कन्या भी, गायत्री का जाप है !

---------------------------------------------------------------

(2)

(टीस)

 

राष्ट्र अपने के लिए, नशा कोढ़ के समान ,

जिसने उजाड़ दिए, लाखों नौजवान हैं !

 

नशे के गुलाम हुए, भूले इस बात को वो,

उनकी जवानी से ही, भारती की शान हैं !

 

भूल निज वंश करें, दानवों सी हरकतें

उन्हें बतलाए वे तो, ऋषि की संतान है !

 

देना होगा हौसला भी, इन्हें समझाना होगा,

हिम्मत करो तो सभी, मंजिलें आसान है

--------------------------------------------------

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 31, 2011 at 10:13am
Thanks, Neeraj Tripathi ji

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 31, 2011 at 10:12am
अंजना जी,  उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत आभारी हूँ !

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 31, 2011 at 10:12am

धर्मेन्द्र भाई, ज़र्रा-नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 31, 2011 at 9:38am

आदरणीय प्रधान संपादक जी, आज के उस दौर में जब युवा साहित्यकार खुली कविता की तरफ आकर्षित है, वहा पर यह छंद युवा साहित्यकारों में जोश का संचार करेगी |

 

ये दोनों रचनाओं का भाव पक्ष बहुत ही मजबूत है, समाज की दो महत्वपूर्ण बुराई "भ्रूण हत्या और नशा" पर सन्देश देती ये रचनाएँ बहुत ही ससक्त बन पड़ी है | 

 

शिल्प की दृष्टि से नए लोगो को एक विधा सिखने का मौका भी है,

इस शानदार अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय प्रधान संपादक जी, ये काव्य कृतिया निश्चित ही ओ बी ओ की गरिमा को कुछ और उचाई प्रदान करेंगी |

Comment by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on May 31, 2011 at 2:34am
अत्युत्तम प्रभाकर जी दो नों ही घनाक्षरी छंद प्रभावशाली हैं,आपके काव्य की सरसता,भाव-प्रवणता आपकी मौलिकता का सौन्दर्य बढ़ाती है। वास्तव में घनाक्षरी को हिन्दी छंदों का छत्रपति कहा गया है।बड़े बड़े महाकवियों की कलम को भी इस छंद को लिखते समय लड़खड़ाते  पाया है। इस छंद की प्रवाहमयी लयात्मकता के लिये यति गति का अनुपालन श्रमसाध्य है।आपका प्रयास स्तुत्य है।
Comment by R. K. PANDEY "RAJ" on May 30, 2011 at 10:06pm

आपकी दोनों कवितायें "भ्रूण हत्या" और "टीस" दोनों ही काफी उम्दा हैं. जहाँ आपकी कवितायों में भावनाएं शब्दों के माध्यम से पिरोई हुयी हैं वहीँ एक शिक्षण भी समाज को साफ़ साफ़ दिया जाता हुआ दिख रहा है. कविता आपकी भावपूर्ण है और शिक्षा से परिपूर्ण है. अति उत्तम और सराहनीय रचना.

 

--राज 
Comment by suryajeet kumar singh on May 30, 2011 at 9:58pm
पैदा ना होने देना ,कोख में ही मार देना , हर मजहब में ये घोर महापाप है ..... बहुत बढ़िया रचना बा प्रभाकर भैया . अउर जोन ऐ रौवा नशा के बारे में लिखले बानी, सही में ई अपना देश के नोजवान लोग के काफी हद तक बहका चुकल बा आउर बहका रहल बा....  धन्यवाद    
Comment by neeraj tripathi on May 30, 2011 at 9:44pm

behtareen

 

Comment by Anjana Dayal de Prewitt on May 30, 2011 at 9:38pm

महामृत्युंजय सम, वंश के लिए जो बेटा,

उसी तरह कन्या भी, गायत्री का जाप है !

bahut sunder!
Comment by धर्मेन्द्र शर्मा on May 30, 2011 at 9:36pm
बहुत ही ऊंचे दर्जे की रचना है ये तो प्रभाकर जी... मेरी और से बधाई स्वीकार करें.

कृपया ध्यान दे...

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