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मैंने तन्हाई को भी पाला है। गजल

बह्र:- 2122-1212-22

जिसके तलवे में निकला छाला है।।
घर उसी हौसले ने पाला है।।।

पहले टूटा तिरा वही रिश्ता।
नौ महीने जिसे सभाला है।।

बाद मुद्दत के आज लौटी हो।
मौत कितना तुम्हे खंगाला है।।

मुश्क!.. ये ऐतबार देती है।
दिल नही जी जेहन भीआला है।।

साथ मेरे ही लौट आती है।
मैंने तन्हाई को भी पाला है।।

अप्रकाशित/ मौलिक
आमोद बिन्दौरी

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 1:09pm

आदरनीय आमोद भाई , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ । 

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 7, 2017 at 12:20pm
आ मोहम्मद आरिफ साहब , आ महेंद्र कुमार साहब जी ,
आ ब्रज कुमार ब्रज साहब जी
आ सुरेन्द्र नाथ सर जी
हौसला आफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
कृपया
अपना प्यार , आशीर्वाद ,मार्गदर्शन देते रहें
Comment by Mahendra Kumar on March 5, 2017 at 1:13pm
बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय आमोद जी। हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 5, 2017 at 7:53am
बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई अदरणीय
Comment by Mohammed Arif on March 4, 2017 at 2:43pm
आदरणीय अमोद जी आदाब, बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । बधाई !
Comment by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 6:12am
आद0 आमोद श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन। उम्दा गजल के लिए बधाई।
Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 3, 2017 at 10:04am
जी सर कनफुज हो गया था
शुक्रिया सर मार्गदर्शन के लिए

मतला पुनः
जिसके तलवे में निकला छाला है।।।
घर उसी हौसले ने पाला है।।।।।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2017 at 9:49am

"तलवों"=बहुवचन

"छाला"= एकवचन 

मतले में वचन दोष आ रहा है भाई आमोद श्रीवास्तव जी. 

कृपया ध्यान दे...

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