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गजल(इश्क को तोलते हैं कहाँ)

212 212 212
इश्क को तोलते हैं कहाँ,
जो तुले,बोलते हैं कहाँ?1

सिसकियाँ हों बँधी गाँठ में,
बावरी! खोलते हैं कहाँ?2

ऐ हवा! तू उड़ा के चुनर
पूछ, हम डोलते हैं कहाँ?3

गम पिये बस जिये अब तलक,
हम जहर घोलते हैं कहाँ?4

चूमते धड़कनें चाव से,
खुद कभी बोलते हैं कहाँ?5
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on February 15, 2017 at 7:37pm
आदरणीय समर साहिब नमस्ते!आपके अनुमोदन से गजल का मान बढ़ा है,सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on February 15, 2017 at 3:41pm
आद0 मनन कुमार सिंह जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। बहुत उम्दा गजल कही आपने, आपको शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।
Comment by Samar kabeer on February 15, 2017 at 3:10pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Manan Kumar singh on February 15, 2017 at 8:42am
आपका दिली शुक्रिया आरिफ जी।
Comment by Manan Kumar singh on February 15, 2017 at 8:41am
आपका दिली शुक्रिया आरिफ जी।
Comment by Mohammed Arif on February 15, 2017 at 8:37am
आदरणीय मनन जी आदाब, बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने । बधाई स्वीकार कीजिए । बह्र के मुताल्लिक गुणीजन राय देंगे ।
लिक

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