For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गाँव की होली (लघु कथा)

गाँव में होली

 गाँव में होली अपनी उफान पर थी । चंदू  के द्वार पर सुबह से ही चौपाल बैठ गयी थी । उनका भतीजा कहीं बाहर कुछ काम करता था । उसीने शराब की कुछ बोतलें घर भेज रखी थीं । गाँव में उसका बड़ा भतीजा रहता था ; कुछ काम का, न काज का, बस दोस्त समाज का !खाने –पीनेवालों का ताँता सुबह से उसके दर पे लगने  लगा,मुफ्त में शराब और गोश्त के कुछ पर्चे मयस्सर जो हो रहे थे । बीच –बीच में माँ –बहन की भी हो जा रही थी। सुननेवालों के मजे –ही –मजे थे । हम भी अपने दरवाजे पर बैठे बच्चों के साथ होली की खुशियाँ बाँट रहे थे ।  वहाँ सुरा – प्रेमियों का कारवाँ आता –जाता रहा , मस्ती मिजाज में रही । फिर अपना मन बना कि स्नान हो, तब गुलाल लगाने –लगवाने का क्रम चलेगा । मैं अपने दर के चापाकल पर स्नान करने बैठा ही था कि चंदू के दर से मिजाज बनाकर निकला मीठू  आ धमका । ‘ काका , काका ! पानी मैं चलाऊँगा, आप नहा लीजिये’।

 ‘हो जायेगा, छोड़ दो’, मैंने कहा ।

‘ नहीं, क्यों ?हम क्लास- फ़ेलो रहे कि नहीं ?’

‘ हाँ, सो तो है’।

‘तब फिर?आप नहाइये,हम चलायेंगे पानी’।

बात कौन करता उससे?मैं नहाता   रहा, वह चापाकल पर जमा रहा । उस जमाने के स्कूल के हेडमास्टर को गालियाँ बकता , अपने लड़के की  नौकरी की सिफ़ारिश बतियाता। मैं टाल –मटोल करता हाँ – हूँ करता रहा कि कब पीछा छूटे? इसी बीच मेरे बड़े पुत्र घर से आ गये, बोले, ‘हो गया, जाइये अब’। और करिश्मा हुआ कि वह बंदा चलने को तत्पर दिखा। फिर सबेरे होली की बख्शीश लेने आने की कहता वह चल निकला । मैं मौन मुस्कुरा रहा था । अतीत की याद ताजा हो रही थी । कभी लंबे अरसे पहले ऐसे ही  एक बार काका से(मुझसे)मिलने  दरवाजे पर आ गया था, वैसे ही खाये –पीये हुए, जो मेरे दरवाजे पर वर्जित था । मुझसे मिलने की जिद कर रहा था और मैं अभी ऑफिस से आया ही था, अंदर कपड़े बदल रहा था। कुछ देर बाद मैं बाहर आया, तो वह कुछ दूर जा चुका था । मैंने आवाज दी, तो कल आने को कहकर निकल गया । इधर बाद में आकर मुझे भी पता चला कि उसकी मुझसे मिलन की लालसा पर मेरे ज्येष्ठ पुत्र के एक दमदार तमाचे का तुषारापात  हो चुका था ।  तबसे उनसे जरा दूर –दूर ही रहता था ।

उधर चंदू का भतीजा तिलमिला रहा था कि जमाना ही ऐसा है । लोग खाते किसीकी हैं और गाते किसीकी।    देखिये भला ! अभी यहाँ से खा –पीकर निकला और गुणगान काका का होने लगा । बिन्नो ने उसे भद्दी –सी गाली दी । गुण होता तब न तेरा भी गान होता उल्लू । टाँग ऊपर कर लेने से गौरैया आसमान छू लेगी क्या ? अरे खिलाते –पिलाते रहो हमें , नाम होगा तेरा भी कभी। आठवीं जमात फेल ससुरे गुमान कितना है रे तुझे ? और फिर  एक बार माँ –बहन के माध्यम से उद्गार – उद्दीपन का क्रम कुछ देर चलता रहा वहाँ। अगल –बगल के लोग मौन मुसकुराते रहे। नशेड़ियों के सामने भाव –सम्पादन का माध्यम मौन ही होता है ।

 

अब सब लोग सज –धज गये थे । गुलाल की बेला परवान पर थी । मैं अपने दोमुंहा( कमरा जो घर को अंदर –बाहर से जोड़ता है ) में आया, मेरी पत्नी हाथ में गड़ी – गुलाल लिए खड़ी थीं । उनका हाथ बढ़ा । वह गुलाल लगाना चाहती थीं,  मैंने सोचा गड़ी है। मेरा मुँह खुल गया, पूरी गुलाल मुँह में । मैं हक्का –बक्का, वह भी । बच्चे मजे ले रहे थे । हम पानी से अपना मुँह धो  रहे थे और हम दोनों हँस रहे थे कि ऐसी होली तो अब तक हुई ही नहीं थी ।

*मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 1822

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on February 14, 2017 at 7:11pm
आदरणीय शहजाद उस्मानी जी,कथा प्रसंग आपको अच्छा लगा,इसके लिए शुक्रिया आपका।कथित प्रवाह को वांछित काल खंड में प्रतिबंधित कर कसावट को अंजाम देना शेष है,जो मुकम्मिल हो जायेगा।वैसे पहला प्रयास सुन कर अच्छा लगा।
Comment by Manan Kumar singh on February 14, 2017 at 7:06pm
आदरणीया सीमाजी,समर जी आभार।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2017 at 6:34pm
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हम पहले भी आपकी बढ़िया लघुकथायें पढ़ चुके हैं। होली की भावपूर्ण रचना में बहते हुए आपकी इतना सब सहज प्रवाह में कह गया, अच्छा लगा। कसावट करते हुए काल खंड समाप्त कर इसे आप लघुकथा सांचेज में परिमार्जित कर ही लेंगे। आगामी होली के संदर्भ में बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति के लिए सादर हार्दिक बधाई आपको।
Comment by Samar kabeer on February 14, 2017 at 6:13pm
सीमा जी से सहमत ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई सुशील जी, सुंदर दोहावली हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भूल सुधार - "टाट बिछाती तुलसी चौरा में दादी जी ""
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ.गिरिराज भंडारी जी, नमस्कार! आपने फ्लेशबैक टेक्नीक के  माध्यम से अपने बचपन में उतर कर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service