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यूँ चाँद का नकाब उतारा न कीजिये (ग़ज़ल 'राज')

२२१ २१२१ १२२१ २१२

बह्र-ए-मज़ारअ मुसम्मिन अखरब मकफूफ़

 

यूँ भीड़ में जनाब पुकारा न कीजिये

रुसवा हमें यूँ आप दुबारा न कीजिये

 

बिलकुल खुली किताब है चेहरा ये आपका

हर रोज पढ़ रहे हैं इशारा न कीजिये

 

नाराज हो न जाएँ सितारे औ आसमाँ

यूँ चाँद का नकाब उतारा न कीजिये

 

मौजे मचल रही हैं तुम्हे देख देख कर

गर पाँव चूम लें तो किनारा न कीजिये

 

गुलशन उदास होगा परेशान डालियाँ

यूँ रास्ते गुलों से सँवारा  न कीजिये 

 

अपनी हमें  न फिक्र जमाने की फिक्र है

बेवक्त इन्तजार हमारा न कीजिये

 

गुस्ताख़ दिल कहीं न भुला दे रिवायतें

जज्बात यूँ हमारे उभारा न कीजिये

--मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on February 13, 2017 at 6:47pm
वाह!वाह!!वाह!!! हर शे'र लाजवाब , पूरी ग़ज़ल लाजवाब । दिली मुबारक क़ुबूल कीजिए आदरणीया राजेश कुमारी जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 13, 2017 at 12:17pm

प्रिय मंजू शर्मा जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 13, 2017 at 12:15pm

आदरणीय डॉ० आशुतोष जी आपका पुनः आभार . 

Comment by manju sharma on February 13, 2017 at 1:53am

आदरणीया राजेश दीदी ! बहुत उम्दा ग़ज़ल, दिल से मुबारकबाद आपको

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 12, 2017 at 10:59pm
आदरणीया राजेश जी आप की रचनाओं का मैं नियमित पाठक हूँ और आप सबके साथ इतनें दिनों में लगातार सीखने की ही मिला और शयद इसी लिए अपने सवाल कर पाता हूँ आपके जवाब से मेरे प्रश्नो जा समाधान हुआ है इसके लिए आभार व्यक्त करते हुए सादर प्रणाम के साथ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2017 at 7:25pm

आद० समर भाई जी ,आपकी प्रतिक्रिया के बाद मैं अपनी किसी ग़ज़ल के प्रति आश्वस्त होती हूँ आपको पसंद आई मेरी मेहनत सफल हुई तहे दिल से आपका बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी 

Comment by Samar kabeer on February 12, 2017 at 7:18pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2017 at 6:56pm

आद० विन्ध्येश्वरी भैया आपको कभी कभी ओबीओ पर देखना अच्छा लगता है पहले तो आप बहुत सक्रिय रहे थे चलो कोई व्यस्तता होगी .आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2017 at 6:54pm

आद० सुरेन्द्र नाथ भैया जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2017 at 6:48pm

आद० डॉ० आशुतोष जी आपको ग़ज़ल पसंद आई उसका तहे दिल से शुक्रिया कुछ संशय को आपने खुलकर पूछा ये एक पाठक का धर्म है कि एक पाठक पूरी शिद्दत के साथ डूब का रचना पढ़ रहा है कुछ प्रश्न उभरे हैं तो लेखक  का भी धर्म है ऊँ संशयों का निवारण करना

न० १ ..मतले को लेकर भाव इस तरह हैं की नायिका ने पहले भीड़  में पुकारने पर नजरअंदाज कर दिया किन्तु दूसरी बार नाराजगी जाहिर  की है  

न.२ ---ये सही है कि चाँद चाहे जमीं का हो या आसमां का उसके अपनों को बुरा तो लगेगा ही यदि कोई उसका नकाब उतारे इशारों में बिम्बात्मक शैली में शेर है 

न० ३ ,फिक्र दो बार आ गया उसमे तो कोई बड़ी बात नहीं शेर की खूबसूरती पर मेरे ख़याल से तो कोई प्रभाव  नहीं पड़ रहा .

आशा है मैं अपनी बात स्पष्ट कर पाई 

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