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बदनाम यूँ करते न कभी शम्अ वफ़ा को (तरही ग़ज़ल 'राज')

221  1221 1221  122

अपनाया मुहब्बत में पतिंगो  ने क़जा को

बदनाम यूँ करते न कभी शम्अ वफ़ा को  

 

है जह्र पियाले में ये मीरा को पता था

बे खौफ़ मगर दिल से लगाया था  सजा को

 

जो लोग  सदाकत से करें पाक मुहब्बत

वो बीच में लाते न कभी अपनी अना को

 

आँधी का नहीं खौफ़ चरागों को भला फिर   

समझेंगे उसे क्या जरा ये कह दो हवा को 

 

देखी वो जवाँ झील लिए नूर की गागर

लो चाँद दीवाना चला अब छोड़ हया को 

  

जब रोज  जलाता रहे  खुर्शीद तपिश से

वो फूल तरसते हैं सदा  बाद-ए-सबा को

 

सजदे में बिछाए हैं बगीचों ने  सितारे 

रोका न करो अब्र यूँ सूरज की जिया को

 

दुनिया ये  मुहब्बत पे भरोसा न करेगी  

तोड़ा न करो यार कभी रस्मे वफा को

---------राजेश कुमारी ‘राज’

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Comment by rajesh kumari on February 21, 2017 at 5:14pm

आद० गिरिराज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ सादर .


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2017 at 9:27pm

आदरणीया राजेश जी बहुत अच्छी गज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें .. , ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2017 at 8:30pm

आद० डॉ० आशुतोष जी ,ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया प्राप्त हुई जिसके लिए दिल से शुक्रगुजार हूँ बहुत बहुत आभार . 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 19, 2017 at 8:04pm
आफर्नीय राजेश जी बेहतरीन शेरो वाली इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई आपकी रचना पर आदरणीय समर सर की प्रतिक्रिया से बेहद अच्छी जानकारी प्राप्त हुयी सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2017 at 5:46pm

आद० महेंद्र कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2017 at 5:45pm

आद०  indravidyavachaspatitiwari जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया .

Comment by Mahendra Kumar on February 19, 2017 at 12:31pm
बहुत ही शानदार ग़ज़ल है आदरणीया राजेश मैम। दिल से बधाई स्वीकार करें। सादर।
Comment by indravidyavachaspatitiwari on February 18, 2017 at 9:45am

 आ0  राजेश कुमारी जी आपकी गजल ने तो दीवानगी में चांद की हया ही छुड़ादी। वाह!वाह! क्या कहने। इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाईयां।


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Comment by rajesh kumari on February 17, 2017 at 11:02pm

आद० सुरेन्द्र नाथ भैया जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ .आद० समर भाई जी ने उचित इस्स्लाह दी है बस अब इसको संशोधित करके दुबार पब्लिश करवाती हूँ |


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Comment by rajesh kumari on February 17, 2017 at 10:59pm

आद० समर भाई जी ,आप ने उन बातों को इंगित किया है जो मेरे दिमाग में ही नहीं आई हम तो हमेशा पतंगे ही उच्चारित करते आये हैं ये आप से ही पता चला की सही लफ्ज़ पतिंगे होता है दूसरा ..दिल से लगाई थी सजा को यहाँ बहुत महीन अंतर आपके बताने पर दिखाई दिया जो ठीक लगा तीसरे ---"जब रोज़ जलाता रहे ख़ुर्शीद तपिश से
वो फूल तरस्ते हैं सदा बाद-ए-सबा को"---ये शेर तो निखर उठा आपके सुझाव से .भाई जी इस मार्ग दर्शन की बेहद शुक्रगुजार हूँ  इस ग़ज़ल को मैंने बहुत वक़्त दिया था लोगों ने बहुत सराहा भी किन्तु इन महीन बातों पर आपने ही गौर किया |लेकिन अब जाके संतुष्टि हुई इसे संशोधित करके दुबारा अप्रूव करवाती हूँ .बहुत बहुत आभार आपका 

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