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गजल(तीर चले चुन चुन के कस कस)

22222222
तीर चले चुन-चुन के कस-कस
मन तो भूला जाता सरबस।1

बूढ़ा बरगद बौराया है
अँगिया- गमछा करते सरकस।2

छौंरा- छौंरी छुछुआये हैं
पुरवा घर-घर करती बतरस।3

बढ़नी लेकर काकी दौड़ी
सच तो सहना पड़ता बरबस।4

फागुन की फुनगी अँखुआयी
चौरा-चौरा होता चौकस।5

आतुर होकर आज हवाएँ
ढूँढ़ रहीं निज मरकज,बेकस।6

मन का मीत कहीं मिल जाये
मनुआ दौड़ चला जस का तस।7

रंग चढ़ा जिसको,वह उछले
बाकी कहते,रहने दो बस।8

कुछ तो घाव 'मनन' भरने दो
मौसम हो जाने दो समरस।9
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2017 at 6:27pm

वाह वाह आदरणीय मनन जी, क्या खूब ग़ज़ल कही है. आनंद आ गया पढ़कर. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. आदरणीय समर कबीर जी जैसे उस्ताद ने ग़ज़ल पर जो मार्गदर्शन किया है और उसके अनुरूप आपने जो संशोधन किया है बस कमाल हो गया. बहुत बहुत बधाई . सादर 

Comment by Samar kabeer on February 6, 2017 at 4:27pm
जी,हम सब ओबीओ के सेवक हैं ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2017 at 11:18am

:-)))

हुज़ूर, मैं नहीं हम बोलिए ! हम सभी सेवक हैं ! 

Comment by Samar kabeer on February 6, 2017 at 11:06am
जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब,आप तो जानते हैं,मैं मंच का सेवक हूँ,आपका शुक्रिया इस स्नेह के लिये ।
Comment by Manan Kumar singh on February 5, 2017 at 10:30pm
आदरणीय सौरभ जी, आपकी फरमाइश का बहुत बहुत शुक्रिया,सादर।
Comment by Manan Kumar singh on February 5, 2017 at 10:28pm
शुक्रिया समर जी,अपने कहने का आशय वही था, सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2017 at 10:24pm

इस ग़ज़ल को पोस्ट हुआ देखने केबाद आज फिर देख रहा हूँ. आमूलचूल परिवर्तन साफ़ परिलक्षित हो रहा है. बिला शक आ०समर साहब की समझाइश का असर है. और उपजे भ्रम को लेकर भी उनका नज़रिया स्पष्ट है. 

हार्दिक आभार आ० समर भाई साहब. 

ग़ज़ल के इस संशोधित प्रारूप पर हार्दिक शुभकामनाएँ आ० मनन जी

शुभ-शुभ

Comment by Samar kabeer on February 5, 2017 at 10:00pm
//गर मुझे कोई मिला उस्ताद होता
शाइरी का इक जहाँ आबाद होता //

कम से कम ओबीओ पर तो आप ऐसा नहीं कह सकते भाई ?
Comment by Manan Kumar singh on February 5, 2017 at 9:43pm
अभी याद आया:
'गर मुझे कोई मिला उस्ताद होता
शाइरी का इक जहाँ आबाद होता।'
Comment by Manan Kumar singh on February 5, 2017 at 9:39pm
शुक्रिया समर जी।

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