For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -आग किसने लगायी थी घर की-- ( गिरिराज भंडारी )

2122    1212    22

गर वो करता है बात बेपर की ?

क्या ज़रूरत नहीं है पत्थर की

 

क्या हुकूमत लगा रही है अब ?

कीमत उस फतवे से किसी सर की 

 

सिर्फ तहरीर में मिले भाई

सुन कहानी तू दाउ- गिरधर की

 

जिनके अजदाद आज ज़िन्दा हों  

वो करें बात गुज़रे मंज़र की

 

क्या मुहल्ला तुझे बतायेगा ?

आग भड़की थी कैसे उस घर की

 

दीन ओ ईमाँ की बात करता है

क्या हवा लग न पायी बाहर की

 

रोशनी आज उनको देखेगी

रुख़  से चिलमन अगर ज़रा सरकी

 

फेर कर देख मेरी गरदन पर

आजमा ले तू  धार तू ख़ंज़र की  

*************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 741

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 18, 2017 at 7:13pm

रोशनी आज उनको देखेगी
आज चिलमन लगी ज़रा सरकी

वाह आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल पेश की आपने। हर शे'र पे वाह निकलती है। हार्दिक मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by Samar kabeer on January 18, 2017 at 3:01pm
जनाब गिरराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
पांचवें शैर पर बहना का सुझाव उत्तम है ।
'रौशनी आज उनको देखेगी
आज चिल्मन ज़रा लगी सरकी'

इस शैर के दोनों मिसरों में 'आज'शब्द खटकता है, दूसरी बात ये कि सानी मिसरे में अल्फ़ाज़ की बंदिश चुस्त न होने से मिसरा रवानी में नहीं है,इस शैर को यूँ कह सकते हैं :-
"रौशनी आज उनको देखेगी
रुख़ से चिल्मन अगर ज़रा सरकी"

आख़री शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये 'मत तू',सानी यूँ कह सकते हैं :-
'आज़मा ले तू धार ख़ंजर की'
Comment by नाथ सोनांचली on January 18, 2017 at 1:20pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर अभिवादन, बहुत ही खूबसूरत और उम्दा गजल बन पड़ी है। हर शैर मुकम्मल कुछ कहता हुआ, बहुत बहुत मुबारकबाद आपको पेश करता हूँ। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 12:21pm

आदरणीय गिरिराज सर, शानदार ग़ज़ल कही है आपने. अशआर एक से बढ़कर एक है. इस शानदार ग़ज़ल पर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 18, 2017 at 11:00am

गर वो करता है बात बेपर की 

क्या ज़रूरत नहीं है पत्थर की?-----सानी पे प्रश्चिन्ह होना चाहिए उला पर नहीं आदरणीय गिरिराज  जी जबरदस्त कटाक्ष शानदार मतला 

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है 

 शेर दर शेर मुबारक बाद क़ुबूल करें 

क्या मुहल्ला तुझे बतायेगा ?

आग किसने लगायी थी घर की---बहुत उम्दा कमाल का शेर इसे ऐसे भी कह सकते हैं --आग भड़की थी कैसे उस घर की .मुझे ऐसा लगा क्योंकि  ...आग किसने लगायी थी घर में --सही होता किन्तु रदीफ़ की वजह से ये नहीं हो सकता | ये मेरा सिर्फ अपना विचार है सादर 

 

 

रोशनी आज उनको देखेगी

आज चिलमन लगी ज़रा सरकी---वाह्ह्ह्ह वाह्ह 

फेर कर देख मेरी गरदन पर

पूछ तासीर मत तू ख़ंज़र की  -----बहुत उम्दा 

दिल से बधाई लीजिये आद० गिरिराज जी 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service