For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो देखो
जा रहा है भेड़ों का झुण्ड
फटी हुई धोती को पहने
और नंगे पाँव
उस एक भेड़ के पीछे
जो है झुण्ड में
सबसे आगे
मगर
क्या वह पहली भेड़
असली है?
अगर तुम्हें याद हो
तो पिछले चुनाव में
अन्तिम नतीजे आते ही
जीत गया था मीडिया
उस पार्टी की जीत के साथ ही
जिसे अपने जनमत सर्वेक्षणों में
दिखाया था उसने
सबसे पीछे होने के बावजूद भी
सबसे आगे
यही वो पहली भेड़ थी
जिसके पीछे चलते हुए तुम
गिर गए थे खाई में
हर बार की तरह
पिछली बार भी
घास की तलाश में।
यह पहली भेड़
राजनीति में
बड़े काम की होती है
क्योंकि
यह ले जाती है गड़रिये को
मैदानी इलाकों से
सत्ता के गलियारों तक
इसलिए
बड़ी ही चालाकी से
तुम्हारी पहली भेड़ को हटाकर
बिठा दी जाती है वहाँ
शतरंज के मोहरे सी
एक नयी नकली भेड़।
यह पहली भेड़
पत्रकारिता का
पहला नियम भी है
जिसके अनुसार
जनता भेड़ की तरह होती है
जिधर पहली भेड़ जाती है
उधर ही बाकी की सारी भेड़ें भी
इसलिए
एक अच्छी पत्रकारिता का काम है
इस पहली भेड़ का
निर्माण करना।
यदि प्रारूप की बात की जाए
तो पहली भेड़
विभिन्न रूप, रंग
और नस्ल की होती है
जैसे कि तुम होते हो
विभिन्न जाति
धर्म
क्षेत्र
वर्ग
कला
इतिहास
भाषा
सभ्यता
और संस्कृति के।
इस पहली भेड़ को
बनाने का काम
आज से नहीं
बल्कि युगों से हो रहा है
कभी चित्रों के माध्यम से
तो कभी पवित्र पुस्तकों
व्यक्तियों
और स्थलों के।
बदलते वक़्त में
इस तरीके ने भी
अपना रूप बदला है
अब यह
नारों, गीतों, चुटकुलों से चलकर
अख़बारों, रेडियो और टीवी से होते हुए
सोशल मीडिया तक पहुँच चुका है
यह तरीका
कभी फ़िल्म बनाता है
तो कभी बदल देता है रातों रात
पूरे का पूरा इतिहास
और साथ में भूगोल
जिससे यह पहली भेड़
ले जा सके तुम्हें
बिना किसी आवाज़
चुपचाप
शान्तिपूर्ण तरीके से
भेड़ियों के झुण्ड तक
जिनसे मिला हुआ है तुम्हारा
बूढ़ा और प्यारा गड़रिया
जो देखता रहता है
तुम्हें हांकते हुए
कि कहीं तुम
बहक तो नहीं रहे हो
चलने से
उस पहली भेड़ के पीछे।
पहली भेड़ के पीछे
झुण्ड बनकर
चलने की यह प्रवृत्ति
बड़ी ख़तरनाक होती है
जो प्रस्फुटित होती है
कभी देश के अन्दर
दंगों के रूप में
तो कभी देश के बाहर
युद्ध की शक़्ल में।
इसलिए
यहाँ सवाल उठता है
कि आख़िर ये भेड़ें
उस पहली भेड़ के पीछे
जाती ही क्यों हैं?
क्या ये अंधी हैं?
या वो पहली भेड़
इनकी पथप्रदर्शक है?
अथवा रहनुमा?
आख़िर क्यों करती हैं
ये सीधी सादी भेड़ें
उस पहली भेड़ पर
इतना विश्वास?
कहीं यह पहली भेड़
उनकी बैसाखी तो नहीं?
यदि हाँ
तो कह दो उन भेड़ों के झुण्ड से
कि जितनी जल्दी हो सके
फेंक दें ये बैसाखी
और शुरु कर दें चलना
अपने पैरों पर
इससे पहले कि वो हो जाएँ
पूरी तरह अपाहिज।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 556

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on January 9, 2017 at 6:12pm
हार्दिक आभार आ. बृजेश जी, सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 4:16pm
बहुत ही सुन्दर और सटीक प्रस्तुति है..हार्दिक बधाइयाँ
Comment by Mahendra Kumar on January 8, 2017 at 9:30am
आदरणीय समर कबीर सर एवं आदरणीय मिथिलेश सर, सादर आदाब। हम जैसे नव शिक्षार्थियों को आप लोगों के मार्गदर्शन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। आपकी टिप्पणियाँ हम लोगों के लिए अत्यन्त मूल्यवान हैं। इस कविता के सन्दर्भ में आप लोगों का सुझाव सही है कि यह अत्यंत तावील हो गयी है। इस अपव्ययिता की तरफ मैं भविष्य में अवश्य ध्यान रखूँगा। देखता हूँ, मैं इसे कैसे छोटा कर सकता हूँ। आप लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 3:29pm

आदरणीय महेन्द्र जी, आपने बहुत बढ़िया विषय चुना है कविता के लिए. प्रतीक भी बढ़िया है किन्तु कविता का अनावश्यक विस्तार और शब्दों का अपव्यय इसके प्रभाव को लगभग ख़त्म कर देता है. बात छोटी सी है कि

भेड़ों के झुण्ड में कब तक रहोगे?

भेड़चाल बंद करो.

क्या नहीं देख सकते कि पहली भेड़ बैसाखी है?

और बलात भेजे जा रहें है सब उसके पीछे

छोड़ो उसे,

सीख लो चलना अपने पैरों पर,

अपाहिज होने से पहले.

इस कथ्य के लिए इतना विस्तार मेरे विचार से उचित नहीं है. बहरहाल इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

 

Comment by Samar kabeer on January 7, 2017 at 3:08pm
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,प्रतीकों के माध्यम से आपने। कविता का अच्छा ताना बाना बुना है, लेकिन कविता बहुत तवील हो गई है,जो इसके असर को कम कर रही है,बहरहाल कविता उम्दा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mahendra Kumar on January 7, 2017 at 1:30pm
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, इस प्रयास की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 7, 2017 at 2:34am
बहुत बढ़िया प्रस्तुति। पहली भेड़ और गड़रिये सहित प्रतीकों में सम्प्रेषित सच्चाई व कटाक्ष पूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
5 hours ago
anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service