भ्रष्टाचार के विरोध में हम भी खड़े हैं इस छोटी सी कविता के साथ
विरोध कायम रहे
इसके लिए जरूरी है
कि कायम रहे
अणुओं का कंपन
अणुओं का कंपन कायम रहे
इसके लिए जरूरी है
विद्रोह का तापमान
वरना ठंढा होते होते
हर पदार्थ
अंततः विरोध करना बंद कर देता है
और बन जाता है अतिचालक
उसके बाद
मनमर्जी से बहती है बिजली
बिना कोई नुकसान झेले
अनंत काल तक
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय बागी जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी। स्नेह बना रहे।
इलेक्ट्रोमैगनेटिक कविता के लिये बहुत-बहुत बधाई.
सही है कि हर पदार्थ ठण्ढा हो कर अति(सु)चालक बन अपने विद्रोही-गुण से भटक जाता है. हम स-समाज ठण्ढों की श्रेणी में ढाले जा रहे हैं.. अनवरत.. सदियों से. षडयंत्रकारियों की यही कोशिश हमें रीढ़हीन बना गयी है. और आज हम हर उस घटना को संदेह की दृष्टि से देखते हैं जो हमारे सामने घटती है. या लिजलिजों की तरह निर्लिप्तता को प्राप्त हुये रहते हैं.
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