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काफिया: अल ;रदीफ़ :गया

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२

नव यौवन चंचल चितवन फिसल गया

यौवन की धूप खिली मन पिघल गया |

तेरे नैनों ने  किया इशारा कुछ

निश्छल मृदु दिल तो मेरा मचल गया |

मखमल सी आवाज़ की तारीफ करूँ

कर्ण प्रवेश से पत्थर दिल पिघल गया |

हम कैसे कह दे के तू  बेवफ़ा है 

तेरा गफलत ही प्यार को कुचल गया |

आक्रोश भरा रूप कभी न दिखाओ

देख रौद्र रूप मेरा दिल दहल गया |

है मंदहास तेरा  मीठा मंजुल

हँसता चेहरा देखा, डर निकल गया | 

 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 13, 2016 at 8:02am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सराहना के लिए हार्दिक आभार |यह एक प्रयास था |ओ बी  ओ का अगला प्रोग्राम इसी बहर पर है | उसका अभ्यास था यह |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 13, 2016 at 7:57am

आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहिब आदाब ,सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद | बहर तो ऊपर लिखा हुआ है २२*५ 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2016 at 12:16am

आदरणीय कालीपद प्रसाद जी, ग़ज़ल पर बढ़िया प्रयास हुआ है. हार्दिक बधाई. 

इस बहर में ग़ज़ल कहने के लिए शब्द कलों की तरफ ध्यान देना जरुरी है. सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 12, 2016 at 8:41pm

जनाब कालीपद प्रसाद साहिब , ग़ज़ल की अच्छी कोशिश , दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --
आपकी ग़ज़ल में बहर का अंदाज़ा नहीं हो पा रहा है ------सादर

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 12, 2016 at 3:57pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी ,आदाब सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया | आपको पसंद आया मेरा लिखना सफल हुआ | साभार  

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 12, 2016 at 3:55pm

आदरणीय समर कबीर साहिब ,आदाब सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया | बहर ठीक है २२*५ है | सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on December 12, 2016 at 11:05am
आदरणीय कालीप्रसाद मंडल जी सादर अभिवादन, सृंगार पूर्ण बेहतरीन गजल के लिए दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमाए। मुझे आपका मतला बेहद खुबसूरत लगा, और शब्दों की बुनकरी भी उम्दा...
Comment by Samar kabeer on December 12, 2016 at 10:23am
जनाब कालीपद प्रसाद मंडल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
दूसरे शैर के ऊला मिसरे की बह्र चेक करें ।

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