For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हारे स्नेह की रंगीन रश्मि

मैं उद्दीप्त

गंभीर-तन्मय ध्यानमग्न

कहीं ऊँचा खड़ा था

और तुम

मुझसे भी ऊँची ...

वह कहकहे

प्रदीप्त स्फुलिंगों-से

हमारी वार्ताएँ मीठी

चमकती दमकती

आँखों में रोशनी की लहर-सी

तुम्हारी बेकाबू दुरंत आसमानी मजबूरी

बरसों पहले की बात

अचानक चाँटे-सी पड़ी

ताज़ी है आज भी

गुंथी तुमसे

उतनी ही मुझसे

बिंध-बिंध जाती है

वेदना की छाती को भी

अभी तक 

आत्मा के आस-पास

सूक्षमतम रुधिर कोषों में

तुम्हारे चले जाने पर मानो

क्षितिज को लगी कुल्हाड़ी

किसी खूँखार जानवर ने गालों को दांतों में

निर्दयता से दबोच दिया

उस दिन लगा कि जैसे 

मैं स्नेह की तीसरी मंज़िल से

धड़ाम-सा गिरा

इतना शीघ्र इस तरह 

कि पल भर भी अब तक  सोच न सका

क्या हुआ

क्यूँ हुआ

या

ज़रा-सी उंगली छुआते ही मानो

सिगरेट की राख झर गई कण-कण

बिखरी ऐसे कि उसका संपूर्ण होना तो दूर

समस्त कणों को समेटना भी असंभव

फटे हुए अँधेरे-सी

उसी में गिरफ़्तार

छूते ही बिखर-बिखर गई

और कुछ राख उदास

मानो हृदय-स्पर्शी निवेदन लिए

उंगली से चिपक गई

अभी तक सोचती-सी पड़ी

मेरी ज़िन्दगी के बड़े

या छोटे-से-छोटे गड्ढे में भी

वह ढरी हुई राख

अभी तक भरी रही है

उसके करुण हृदयभेदी बिलखते

निवेदन के मूक स्वर

अब खोखले सही

मुझको अभी तक साफ़ सुनाई  दे रहे हैं

शायद तुम्हें भी

अपनी नई मजबूरियों को ठेलते

कभी-कभी

            -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्राकाशित)

Views: 1075

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 6, 2016 at 11:01am
जनाब विजय निकोरा जी अदाब,बहुत ही गंभीर गहराईगहराई से निकली इस कविता के लिए आपको हार्दिक बधाई।
Comment by Samar kabeer on December 5, 2016 at 8:27pm
जनाब विजय निकोर जी आदाब,फ़िक्र की धारा में बहती हुई बहतरीन बिम्बों के सहारे बहुत ही उच्च कोटि की कविता से नवाज़ा है आपने मंच को,इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
20 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service