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गीतिका/सतविन्द्र कुमार राणा

आधार छन्द -- वाचिक भुजंगप्रयात
मापनी - 122 122 122 122
समान्त-- आ
पदान्त -- है
गीतिका
-------------------------------------------

बिना कर्म के कब किसे कुछ मिला है
करे कर्म जो साथ उसके खुदा है।

लिए माल को आज चिल्ला रहा जो
गरीबी है' क्या वो नहीं जानता है।

सदा श्रम से' सींचा है' जिसने जमीं को
उसी से ही' तो अन्न सबको मिला है।

नहीं मिलता' उसको जो है चाहता वो
बहुत कुछ मगर उसने सब को दिया है।

सही कर्म हो सबके कुछ इस तरह से
कि जिनसे सभी का ही तो फायदा है।

यूँ राणा समझ बनती जाए सभी की
सही जीने का जो हुआ कायदा है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on November 30, 2016 at 5:21pm
जनाब सतविन्द्र कुमार'राणा'जी आदाब,आरंभिक से अंतिका तख़ बढ़िया गीतिका हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 30, 2016 at 4:25pm
आभार आदरणीय श्याम नारायण जी,सादर नमन
Comment by Shyam Narain Verma on November 30, 2016 at 10:59am

सुंदर भाव लिए, उत्तम रचना के लिए बधाई ....

सादर

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