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तरही ग़ज़ल --बेहोश इक नजर में हुई अंजुमन तमाम ( राज )

221   2121  1221   212/2121 

पर्दा जो उठ गया तो हुआ काला धन तमाम

चोरों की ख्वाहिशों के जले तन बदन तमाम

 

बरसों से जो महकते रहे भ्रष्ट इत्र  से

इक घाट पे धुले वो सभी पैरहन तमाम

 

बावक्त असलियत का मुखौटा उतर गया

किरदार का वजूद हुआ दफ़अतन तमाम

 

ये बंद खिड़कियाँ जो खुली, पस्त हो गई    

सब झूट औ फरेब की बदबू घुटन तमाम 

 

परवाज पर लगाम जो माली ने डाल दी

भँवरे का हो गया वो तभी बाँकपन तमाम

 

ईलाज  में दवाएँ भी नाकाम हो रही

ईमान की खुराक से सुधरे वतन तमाम

 

जादू न जाने क्या था मदारी के खेल में

बेहोश इक नजर में हुई अंजुमन तमाम

----मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on November 28, 2016 at 1:53pm

आद० समर भाई जी ,ग़ज़ल पर आपकी दाद व् इस्स्लाह दोनों का तहे दिल से स्वागत है मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ | भाई जी इस बार मुशायरे के ठीक पहले एक नजदीकी रिश्तेदार की मृत्यु की दुखद सूचना मिली तो तुरत फुरत में भागना पड़ा आज  ही वापस लौटी हूँ |


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Comment by rajesh kumari on November 28, 2016 at 1:50pm

ब्रिजेश कुमार बृज जी ,आपका बहुत- बहुत आभार |


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Comment by rajesh kumari on November 28, 2016 at 1:49pm

आद० बृज नाथ शर्मा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया |


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Comment by rajesh kumari on November 28, 2016 at 1:48pm

आद० शेख़ उस्मानी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखनकर्म सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत आभार आपका |


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Comment by rajesh kumari on November 28, 2016 at 1:46pm

मोहतरम  तस्दीक साहब ,ग़ज़ल पर आपकी दाद मिली तहे दिल से आभार आपका |आपकी इस्स्लाह का स्वागत है |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2016 at 11:24am

ऑ० राजेश दी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें l

Comment by vijay nikore on November 28, 2016 at 8:07am

गज़ल अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2016 at 5:10pm

आ० दीदी मुशायरे से अलग यहाँ ? बहुत उम्दा गजल है . मुबारकबाद .

Comment by नाथ सोनांचली on November 26, 2016 at 11:37am
दीदी आद0 राजेश कुमारी जी बढ़िया गजल के लिए मेरी मुबारकबाद। वर्तमान परिपेक्ष्य में इस गजल की उपादेयता और बढ़ गयी है। पुनश्च नमन संग बधाई
Comment by Samar kabeer on November 26, 2016 at 10:24am
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,उम्दा तरही ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
बहना ये क्या,आपने तरही मुशायरे में सहभागिता नहीं की कोई ख़ास वजह है क्या ?
इस ग़ज़ल में 'दफ़अतन'क़ाफ़िया। सही क़ाफ़िया न होते हुए सौती क़ाफ़िया है, देखियेगा ।

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