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तेरे आने से मेरा घर जगमगाया

तेरे आने से मेरा घर जगमगाया
पूर्णिमा का चंद्र जैसे मुस्कुराया

स्वांग रचकर रचयिता सबको नचाये
इस जगत को मंच इक अद्भुत बनाया

लाज कपड़ो में छुपाती थी कभी वो
आज उरियानी का कैसा दौर आया

आपदा जिसने न झेली जिन्दगी में
हौसलों की भी परख वो कर न पाया

पूछता दिल कटघरे में खुद को पाकर
इश्क ही क्यों हर कदम पे लड़खड़ाया

ज़िन्दगी भी पूछती है क्या बताऊँ
क्या मिला है और क्या मैं छोड़ आया

खोजती है हर नजर बस एक तुझको
पर नज़ारों में नजर तू ही न आया।।

ये जुदाई है कयामत क्या करूँ में
सब्र की है इन्तिहा कोई खुदाया

ख्वाब में मिलते रहे हैं आप हमसे
नाथ को ताबीर का फल मिल न पाया

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by नाथ सोनांचली on October 11, 2016 at 3:20pm
दीदी राजेश कुमारी जी आपका गजल को मान देने के लिए कोटि कोटि आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2016 at 11:48am

ज़िन्दगी भी पूछती है क्या बताऊँ
क्या मिला है और क्या मैं छोड़ आया---वाह्ह्ह्ह 

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आपकी बह्र --रमल मुसद्दस सालिम २१२२  २१२२  २१२२ को  सुघड़ता से निभाया है आपने |दिल से दाद क़ुबूल करें आद० सुरेन्द्र नाथ जी |

Comment by नाथ सोनांचली on October 10, 2016 at 5:21am
आपका आशीर्वाद मिला मै धन्य हुवा। अगली बार से आर्कन अवश्य लिखूंगा
Comment by Samar kabeer on October 10, 2016 at 12:03am
जनाब सुरेन्द्र नाथ जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
ग़ज़ल आपकी बह्र में ,सभी अशआर रवानी में हैं, इसके लिये अलग से दाद क़ुबूल फ़रमाऐं । इस मंच पर अरकान लिखने का नियम है,जो आपने नहीं लिखे,आईंदा से इसका ध्यान रखियेगा ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 9, 2016 at 9:43am
आदरणीय श्री सुरेश जी ह्रदय तल से आभार आपको
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 9, 2016 at 9:10am
आदरणीय श्री सुरेंद्र जी खूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।

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