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लघुकविता - "मेहरबानी" - अर्पणा शर्मा

" चूँकि,
मुश्किल थी,
देखभाल,
अंततः वह,
छोड़ ही आया,
वृद्धाश्रम में
माँ को,
वर्षों पहले,
इसी कारण से,
वह ले आई थी,
अनाथाश्रम से,
एक नन्हा बालक,
अपने घर को....!!"

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by Arpana Sharma on October 11, 2016 at 10:55am
मेरी रचना पर आपकी सराहना का बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी। अभी थोड़े समय पहले ही इस पोर्टल से जुड़ी हूँ ।धन्यवाद आपने मेरी रचना पढ़ने का सभ्य निकाला।

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Comment by rajesh kumari on October 10, 2016 at 5:32pm

बहुत खूब गागर में सागर भरती हुई आपकी ये लघु कविता बहुत अच्छी लगी शायद मैं आपको पहली बार पढ़ रही हूँ आपका बहुत बहुत स्वागत है |

Comment by Arpana Sharma on October 10, 2016 at 3:28pm
आदरणीय श्रीमान् कालीपद प्रसाद मंड़ल जी, आ.श्रीमान् सुशील सरना जी, आ.श्रीमान् सुरेश कुमार "कल्याण"जी- मेरी उक्त कविता पसंद करने के लिए आप सबका बहुत धन्यवाद एवं सादर नमन।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 8, 2016 at 3:25pm
आदरणीया अर्पणा जी मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 8, 2016 at 1:35pm

बहुत मार्मिक , विचारनीय विषय आदरणीया 

Comment by Sushil Sarna on October 8, 2016 at 12:49pm

वाह आदरणीया अर्पणा जी  ... एक संवेदनशील मार्मिक क्षणिका  ... वैसे समाज में गोद लिए अनाथ बच्चों के किस्से तो बहुत कम होंगे आजकल तो कोख़ जाई संतानें भी  यही कर रही हैं , यही नहीं आजकल तो वृद्ध भी ज़माने को देखते हुए अपने लिए वृद्धाश्रम ढूंढने लगे हैं।  बहरहाल इस मार्मिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। 

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