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करमों से नाम बने

कोई सूली पर चढ़े
और मसीह बने
कोई वन को गए
और राम बने
कोई सीता पर मरे
और रावण बने
अपमानित हुई नारी
और भीष्म बने
राहुल को त्यागे
और गौतम बने
नर्क भी यहीं है
स्वर्ग भी यहीं है
इतिहास मरने
से पहले है बनता
धरती पर ही
अपने करमों से
कुछ राम बने
और रावण बने
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on October 7, 2016 at 11:22am

आदरणीया दीपू जी आपको कविता के इस प्रस्‍तुति के लिये बहुत बधाई 

Comment by Samar kabeer on October 6, 2016 at 10:54pm
मोहतरमा दीपू जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by S.S Dipu on October 5, 2016 at 5:48pm
आदरणीय shiju Shakur ji . Bohut Khushi hoti hai jab koi apki Kavita padh kar usme kamiya bataye ya phir badhai de . Bohut khush hain hum apki Prashan SE kyuki Kavita bachapan ki likhi thi
ये कविता हमने तब लिखी थी जब मै स्कूल मे थी । तब हमने यह सोच के लिखा की ईश्वर भी मनुष्य ही थे स्वर्ग नर्क भी यही है हम जो भी करम करते है उसका फल व नाम यही मिलता है । मरने के बाद नही सामने ही हमें करमों नुक़सान व लाभ मिल जाता है
आभार

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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2016 at 4:09pm

मुआफी चाहता हूँ दीपू जी इस दफे आपकी कविता के मर्म को समझ नहीं सका.

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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