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आज बलि चढ़
रही है मानवता
हर तरफ़
शहीद हुए जा
रही है सचाई
गुम हो गये
है प्यार के फूल
डरा के छुप
रही है परछायी
कौन है ज़िम्मेदार
दरंदगी के लहु का
हर ओर क्यूँ
हो रही लड़ाई
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 27, 2016 at 8:55am
आदरणीया दीपू जी सुन्दर रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by S.S Dipu on September 26, 2016 at 5:25pm
रखिएगा
Comment by S.S Dipu on September 26, 2016 at 5:23pm
धन्यवाद आदरणीय sheikh Shahzad usmani ji दरंदगी के लहू का मैंने यह सोच के लिखा है कि darende जो मासूमों की जान लेते है हिंसा फैलते है उससे चारों ओर जो ख़ून खरबा होता है और लहू बहता है । मुझे ख़ुशी हुई की आप सभी को मेरी कविता पसंद आती है में आयिन्दा भी अच्छी रचना लेकर आती रहूँगी । आप अपना आशीर्वाद बनाए रखना ।
आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2016 at 4:15pm

अच्छी रचना है आ. दीपू जी बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2016 at 4:10pm
'ई' चल रहा है तो 'परछाई' भी चलेगा क्या 'परछायी' के स्थान पर!!!! बहुत बढ़िया ज्वलंत प्रश्न करती रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको आदरणीया दीपू जी। लिखते रहियेगा। 'दरिंदगी के लहु' पर कुछ संशय हो रहा है।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 25, 2016 at 7:29pm

हाँ शाश्वत  प्रश्न है भाई  ------------ रचना पर बधाई

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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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