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अध्यापक और शिक्षा

गुरु भगवान से पहले आते सब जाते बलिहारी

ज्ञान का सूरज यहाँ निकलता नहीं रहे अज्ञानी

सूरज सादृश्य वह ज्ञान बांटते कोई नहीं शानी

शिक्षा एवं संस्कार बांटते यह है अमिट कहानी

सरकारी स्कूलों में अध्यापक करते हैं मनमानी

देश की प्रगति में बाधक पर कहलाते हैं ज्ञानी

ऐसे शिक्षक को दंड मिले तो नहीं कोई हैरानी    

मानवता को शर्मिंदा कर बच्चों की करते हानी

बच्चों संग करते भेद भाव शिक्षा में आनाकानी

नादानों से करते दुर्व्यवहार सुनकर होती हैरानी   

यहाँ गरीबों के बच्चों को मिलता नहीं है पानी  

छुआ-छूत, ऊंच, नीच की मिलती रोज कहानी

आजादी के सत्तर सालों में नहीं मिटी बेईमानी

सुन करके यह अचरज होता ऐसी कड़वी वानी

संविधान के साथ हो रही है यह कैसी नादानी    

देश और समाज के दुश्मन करते हैं मनमानी  

सरकार हमारी करती क्या !होती न फरमानी॥  

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 10:14pm

सुंदर रचना हुई है आदरणीय |हार्दिक बधाई |

Comment by Ram Ashery on September 21, 2016 at 5:00pm

ध्न्यवाद मैडम जी आपके इस सुझाव के लिए मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिस करूंगा । अपने मेरी रचना को धायन से पढ़ा और अपने अमूल्य सुझाव दिये मैं उसके लिए आपका आभारी हूँ यहा हृदय  से आभार व्यक्त करता हूँ

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 21, 2016 at 4:33pm

समतुकांत शब्दों को ढूँढ उनपर कथ्य साधने का सफल प्रयास... किन्तु ये गीत या कविता कुछ भी नहीं.... इन मूल भावों पर अभी बहुत श्रम शेष रह गया.. 

कथ्य ज़रूर सही है मगर उसे प्रभावशाली तरह से प्रस्तुत करना एक कला है.... आशा है अन्य अभिव्यक्तियों  के सतत पठन और अभिव्यक्तिकरण पर आपकी नज़र रहती होगी.... ज़रूर आपकी एक सधी हुई प्रस्तुति देखने को मिले ऐसी शुभकामना है आ० राम आश्रय जी 

Comment by Ram Ashery on September 20, 2016 at 8:20pm

मेरी रचना पर आपके अमूल्य शब्दों के लिए आपको मेरा अभिनंदन स्वीकार हो  

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 20, 2016 at 11:43am
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय राम आसरे महोदय, हार्दिक बधाई । सादर ।
Comment by Ram Ashery on September 19, 2016 at 9:00pm

आदरणीय समर कबीर सर आपको मेरा सदर अभिवादन स्वीकार हो आपने मेरी रचना को पढ़ा और उसकी तारीफ की उसके लिए आपको  एक बार फिर से सदर अभिनंदन करता हूँ 

Comment by Samar kabeer on September 19, 2016 at 5:33pm
जनाब राम आश्रय जी आदाब,आपकी रचना सत्य बयान कर रही है,यही हो रहा है आजकल शिक्षा के नाम पर ।
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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