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हिन्दी दिवस पर दो कुकुभ छंद एक ताटंक

कुकुभ छंद -२

देश की एकता, अखण्डता, सबकी वाहक है हिंदी

भाव, विचार, पूर्णता, संस्कृति, सभी का प्रतिरूप हिंदी |

आम जन की मधुर भाषा है, भारत को नई दिशा दी

है विदेश में भी यह अति प्रिय, लोग सिख रहे हैं हिंदी ||

सहज सरल है लिखना पढ़ना, सरल है हिन्द की बोली

संस्कृत तो माता है सबकी, बाकी इसकी हम जोली |

हिंदी में छुपी हुई मानो, आम लोग की अभिलाषा  

जोड़ी समाज की कड़ी कड़ी, हिंदी जन-जन की भाषा ||

ताटंक -१

देश की होगी उन्नति तभी, जब उन्नत होगी हिंदी

कन्याकुमारी से श्रीनगर, जब बोली होगी हिंदी |

अनेकता और एकता का, स्वर उठाती यही हिंदी

प्रेम और सौहाद्र का अलग, दूजा नाम यही हिंदी ||

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 15, 2016 at 7:28pm
आदरणीय श्री कालीपद जी सुन्दर एवं भावप्रद रचना के लिए हार्दिक बधाई । बाकी आदरणीय श्री सौरभ पांडेय जी के मार्गदर्शन पर ध्यान दीजिएगा।सादर ।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 15, 2016 at 4:55pm

छंद के भाव अति सुन्द है श्री कालीपद  जी, पर लय का अभाव दिख रहा है जैसा कि आदरणीय सौरभ जी ने भी बताया है |

हार्दिक बधाई आपको  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 4:33pm

आदरणीय कालीपद जी, आप छ्न्दों में मात्राओं की गिनती के अलावा शब्द-संयोजन पर भी अभ्यास कर रहे हैं. यहाँ इसकी बहुत कमी दिखी है और तुकान्तता के प्रति कृपया समझ विकसित कीजिये. छायावाद के ज़माने से पद्य-विधाओं के नियम अधिक ससे होने चाहिए. 

सादर शुभकामनाएँ 

Comment by Samar kabeer on September 15, 2016 at 3:52pm
जनाब कालीपद प्रसाद मंडल जी आदाब,बहुत बढ़िया लगे आपके छन्द,मुझे इसके बारे में जानकारी नहीं है सीखने का प्रयास कर रहा हूँ,दिल से बधाई स्वीकार करें इस प्रस्तुति पर ।

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