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प्रजातंत्र के देश में, परिवारों का राज

वंशवाद की चौकड़ी, बन बैठे अधिराज |

वंशवाद की बेल अब, फैली सारा देश

परदेशी हम देश में, लगता है परदेश  |

लोकतंत्र को हर लिये, मिलकर नेता लोग

हर पद पर बैठा दिये, अपने अपने लोग |

हिला दिया बुनियाद को, आज़ादी के बाद

अंग्रेज भी किये नहीं,  तू सुन अंतर्नाद |

संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार

स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार |

बना कर लोकतंत्र को, खुद की अपनी ढाल

लूट रहे नेता सकल, जनता का सब माल |

हर पद पर परिवार के, सदस्य विराजमान

विनाश क्या होगा कभी, रक्तबीज संतान ?

प्रजा करे अब फैसला, करे साफ़ परिवार

जनता से मंत्री बने, मिले राज अधिकार |

मौलिक व् अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 15, 2016 at 8:52pm

आदरणीय राम शिरोमणी जी , क्या आपका गाया एक दोहा छंद व्हाट एप  में भेज सकते हैं ? मैंने रेडियो में , अपने शिक्षको से जो जो  सूना था , वैसा गाता  हूँ, शायद वह गलत है |आपके ट्यून को अपनाकर देखूंगा | 

सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 15, 2016 at 8:28pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , संशय दूर करने के लिए  हृदयातल से धन्यवाद | अब शब्दकलों पर ध्यान दूँगा | सादर  

Comment by ram shiromani pathak on September 15, 2016 at 4:10pm
गाकर यदि लिखते रहे,दोहों को श्रीमान।
भंग न होगी गेयता,ना कोई व्यवधान।।

मैं सदैव ऐसा ही करता हूँ।आदरणीय
इससे अटकाव या गेयता की समस्या नहीं रहेगी।।सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 4:00pm

आप बिल्कुल सही हैं आदरणीय कालीपद जी. आपकी समझ सदिश हो चुकी है बस आप शब्दकलों के मर्म पर ध्यान केन्द्रित करें.

और, आदरणीय, जिन तथाकथित प्रबुद्ध दोहाकार के दोहे का उद्धरण आप दे रहे हैं वे आधी-अधूरी जानकारी या लापरवाही के शिकार प्रतीत होते है. अपने समाज में ऐसे हज़ारों दोहाकार भरे पड़े हैं जो मात्रिकता के आगे छन्दों के मूलभूत नियम तक नहीं जानते और पूरे छन्द साहित्य को उथला किये हुए हैं.

हर शब्द के उच्चारण का महत्व है और तदनुरूप उनका विन्यास मान्य होता है. यानी, दिवस का उच्चारण जब होगा दि+वस ही होगा. यदि किसी छन्द की मात्रिकता में बँध कर दिवस शब्द का उच्चारण  दिव+स की तरह करना पड़े तो लानत भेजिये उस छन्दकार की समझ को !

इस मामले में उर्दू के ग़ज़लकार कहीं अधिक आग्रही हुआ करते हैं. वे किसी शब्द के गलत प्रयोग पर चाहे कोई गज़लकार हो, ख़ारिज़ कर देते हैं. हिंदी के तथाकथित छन्दशास्त्री आत्ममुग्धता का शिकार बने माहौल को संशयात्मक बनाये बैठे हैं. 

सादर

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 15, 2016 at 9:18am

आदरणीय सौरभ पांडेय जी , आपके प्रेरणात्मक शब्दों के लिए मैं आभारी हूँ | आपके प्रोत्साहन से ही कुछ पूछने की हिम्मत कर रहा हूँ ;मैं एक निश्नाद आधुनिक दोहाकार के दोहे पढ़ रहा था ताकि कुछ सीख सकूँ | उसमें कुछ संशय उत्पन्न हुआ है;  उन्होंने विषम चरण का  अंत किया  है :-

"दिवस पर " इसमें उच्चारण के हिसाब से -दि  वस् पर अर्थात १२२ समाप्त हो रहा है  लेकिन  गण "न गण"  (१)

उसी प्रकार " जगत में "  उच्चारण         ज  गत में ....वही  १२२ पर समाप्त हो रहा है लेकिन गण "स गण  (२)

"में सरल "= में  स रल = २१२ (उच्चारण में )   (३)

निर्मल करे= निर मल क रे =२१२ (उच्चारण में ) (४)

मैं समझता हूँ (१) & (२) गलत है और (३) & (४) सही है | कृपया आप मेरा संशय दूर करे | (२) & (४) स गण  से अंत हो रहा है |

सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 15, 2016 at 8:42am

आदरणीय राम शिरोमणि जी , आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी की टिप्पणी के बाद मेरा कुछ कहना उचित नहीं है | मैं केवल दो बात कहना चाहूँगा |

संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार
स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार।।संविधान की आड़ में?? आपके प्रश्न वाचक  चिन्ह का उत्तर ऐसा है |:-  " रोको, मत जाने दो " "रोको मत, जाने दो "  | यहाँ अल्पविराम का जैसा उपयोग हुआ है , वैसा ही सत्ताधारी पार्टी संविधान का उपयोग कर रहे है | अब आप को समझ में आ गया होगा |

बना कर लोकतंत्र को, खुद की अपनी ढाल
लूट रहे नेता सकल, जनता का सब माल।गेयता भांग है 1 पद

हर पद पर परिवार के, सदस्य विराजमान
विनाश क्या होगा कभी, रक्तबीज संतान।यहाँ भी वही दोष

प्रजा करे अब फैसला, करे साफ़ परिवार
जनता से मंत्री बने, मिले राज अधिकार।ये दोहा ही गलत है....... *आदरणीय ज़रा आप बताने की कष्ट करेंगे कि  किस विधान के अनुसार यह दोहा गलत है और सुधार  के लिए आपका सुझाव क्या है ? मैं समझता हूँ सुधी  जन को अपनी बात विधान अनुसार तार्किक ढंग से रखना चाहिए |

सादर  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 12:12am

आदरणीय कालीपद जी, आप बेलाग लिखें. जितना आपने समझा है उतने के आधार पर आप रचनाकर्म कर रहे हैं यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है. आप अपनी बात अवश्य कहें. ताकि सहयोगी पाठकों के सुझावों पर भी चर्चा हो सके.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 12:09am

भाई रामशिरोमणी जी, आपने दोहा के विधान पर खूब चर्चा की. आदरणीया कालीपदजी तो पूरा सोदाहरण समझ चुके होंगे कि कहाँ-कहाँ क्या-क्या देखना है ताकि वे अपने दोहों में सुधार कर सकें. 

आपके दोहों पर दो-ढाई वर्षों पूर्व क्या इसी तरह से चर्चा और टिप्पणियाँ होती थीं ? भाई मेरे, ऐसे व्यवहार को ही ’लग्गी से पानी पिलाना’ कहते हैं. 

वैसे आपने मेरे कहे को मान दिया, मैं इतने से ही धन्य हुआ. हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 12:06am

//उपर्युक्त बातें मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित हैं संभव मैं गलत भी होऊं //

आपकोविधान पढ़ने से किसी ने मना कियाहै भाई रामबलीजी ? और आप पढ़ कर कुछ कहते हैं तो शर्म किस बात की है ? जितना समझ पा रहे हैं उतने की चर्चा करें. 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 14, 2016 at 11:38pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,धन्यवाद आपको |आपके सुझाव के बाद ही मैं फिर अनपी बात आपक सामने रखूँगा |

सादर 

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