For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रजातंत्र के देश में, परिवारों का राज

वंशवाद की चौकड़ी, बन बैठे अधिराज |

वंशवाद की बेल अब, फैली सारा देश

परदेशी हम देश में, लगता है परदेश  |

लोकतंत्र को हर लिये, मिलकर नेता लोग

हर पद पर बैठा दिये, अपने अपने लोग |

हिला दिया बुनियाद को, आज़ादी के बाद

अंग्रेज भी किये नहीं,  तू सुन अंतर्नाद |

संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार

स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार |

बना कर लोकतंत्र को, खुद की अपनी ढाल

लूट रहे नेता सकल, जनता का सब माल |

हर पद पर परिवार के, सदस्य विराजमान

विनाश क्या होगा कभी, रक्तबीज संतान ?

प्रजा करे अब फैसला, करे साफ़ परिवार

जनता से मंत्री बने, मिले राज अधिकार |

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 1734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 15, 2016 at 8:52pm

आदरणीय राम शिरोमणी जी , क्या आपका गाया एक दोहा छंद व्हाट एप  में भेज सकते हैं ? मैंने रेडियो में , अपने शिक्षको से जो जो  सूना था , वैसा गाता  हूँ, शायद वह गलत है |आपके ट्यून को अपनाकर देखूंगा | 

सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 15, 2016 at 8:28pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , संशय दूर करने के लिए  हृदयातल से धन्यवाद | अब शब्दकलों पर ध्यान दूँगा | सादर  

Comment by ram shiromani pathak on September 15, 2016 at 4:10pm
गाकर यदि लिखते रहे,दोहों को श्रीमान।
भंग न होगी गेयता,ना कोई व्यवधान।।

मैं सदैव ऐसा ही करता हूँ।आदरणीय
इससे अटकाव या गेयता की समस्या नहीं रहेगी।।सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 4:00pm

आप बिल्कुल सही हैं आदरणीय कालीपद जी. आपकी समझ सदिश हो चुकी है बस आप शब्दकलों के मर्म पर ध्यान केन्द्रित करें.

और, आदरणीय, जिन तथाकथित प्रबुद्ध दोहाकार के दोहे का उद्धरण आप दे रहे हैं वे आधी-अधूरी जानकारी या लापरवाही के शिकार प्रतीत होते है. अपने समाज में ऐसे हज़ारों दोहाकार भरे पड़े हैं जो मात्रिकता के आगे छन्दों के मूलभूत नियम तक नहीं जानते और पूरे छन्द साहित्य को उथला किये हुए हैं.

हर शब्द के उच्चारण का महत्व है और तदनुरूप उनका विन्यास मान्य होता है. यानी, दिवस का उच्चारण जब होगा दि+वस ही होगा. यदि किसी छन्द की मात्रिकता में बँध कर दिवस शब्द का उच्चारण  दिव+स की तरह करना पड़े तो लानत भेजिये उस छन्दकार की समझ को !

इस मामले में उर्दू के ग़ज़लकार कहीं अधिक आग्रही हुआ करते हैं. वे किसी शब्द के गलत प्रयोग पर चाहे कोई गज़लकार हो, ख़ारिज़ कर देते हैं. हिंदी के तथाकथित छन्दशास्त्री आत्ममुग्धता का शिकार बने माहौल को संशयात्मक बनाये बैठे हैं. 

सादर

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 15, 2016 at 9:18am

आदरणीय सौरभ पांडेय जी , आपके प्रेरणात्मक शब्दों के लिए मैं आभारी हूँ | आपके प्रोत्साहन से ही कुछ पूछने की हिम्मत कर रहा हूँ ;मैं एक निश्नाद आधुनिक दोहाकार के दोहे पढ़ रहा था ताकि कुछ सीख सकूँ | उसमें कुछ संशय उत्पन्न हुआ है;  उन्होंने विषम चरण का  अंत किया  है :-

"दिवस पर " इसमें उच्चारण के हिसाब से -दि  वस् पर अर्थात १२२ समाप्त हो रहा है  लेकिन  गण "न गण"  (१)

उसी प्रकार " जगत में "  उच्चारण         ज  गत में ....वही  १२२ पर समाप्त हो रहा है लेकिन गण "स गण  (२)

"में सरल "= में  स रल = २१२ (उच्चारण में )   (३)

निर्मल करे= निर मल क रे =२१२ (उच्चारण में ) (४)

मैं समझता हूँ (१) & (२) गलत है और (३) & (४) सही है | कृपया आप मेरा संशय दूर करे | (२) & (४) स गण  से अंत हो रहा है |

सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 15, 2016 at 8:42am

आदरणीय राम शिरोमणि जी , आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी की टिप्पणी के बाद मेरा कुछ कहना उचित नहीं है | मैं केवल दो बात कहना चाहूँगा |

संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार
स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार।।संविधान की आड़ में?? आपके प्रश्न वाचक  चिन्ह का उत्तर ऐसा है |:-  " रोको, मत जाने दो " "रोको मत, जाने दो "  | यहाँ अल्पविराम का जैसा उपयोग हुआ है , वैसा ही सत्ताधारी पार्टी संविधान का उपयोग कर रहे है | अब आप को समझ में आ गया होगा |

बना कर लोकतंत्र को, खुद की अपनी ढाल
लूट रहे नेता सकल, जनता का सब माल।गेयता भांग है 1 पद

हर पद पर परिवार के, सदस्य विराजमान
विनाश क्या होगा कभी, रक्तबीज संतान।यहाँ भी वही दोष

प्रजा करे अब फैसला, करे साफ़ परिवार
जनता से मंत्री बने, मिले राज अधिकार।ये दोहा ही गलत है....... *आदरणीय ज़रा आप बताने की कष्ट करेंगे कि  किस विधान के अनुसार यह दोहा गलत है और सुधार  के लिए आपका सुझाव क्या है ? मैं समझता हूँ सुधी  जन को अपनी बात विधान अनुसार तार्किक ढंग से रखना चाहिए |

सादर  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 12:12am

आदरणीय कालीपद जी, आप बेलाग लिखें. जितना आपने समझा है उतने के आधार पर आप रचनाकर्म कर रहे हैं यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है. आप अपनी बात अवश्य कहें. ताकि सहयोगी पाठकों के सुझावों पर भी चर्चा हो सके.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 12:09am

भाई रामशिरोमणी जी, आपने दोहा के विधान पर खूब चर्चा की. आदरणीया कालीपदजी तो पूरा सोदाहरण समझ चुके होंगे कि कहाँ-कहाँ क्या-क्या देखना है ताकि वे अपने दोहों में सुधार कर सकें. 

आपके दोहों पर दो-ढाई वर्षों पूर्व क्या इसी तरह से चर्चा और टिप्पणियाँ होती थीं ? भाई मेरे, ऐसे व्यवहार को ही ’लग्गी से पानी पिलाना’ कहते हैं. 

वैसे आपने मेरे कहे को मान दिया, मैं इतने से ही धन्य हुआ. हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 12:06am

//उपर्युक्त बातें मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित हैं संभव मैं गलत भी होऊं //

आपकोविधान पढ़ने से किसी ने मना कियाहै भाई रामबलीजी ? और आप पढ़ कर कुछ कहते हैं तो शर्म किस बात की है ? जितना समझ पा रहे हैं उतने की चर्चा करें. 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 14, 2016 at 11:38pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,धन्यवाद आपको |आपके सुझाव के बाद ही मैं फिर अनपी बात आपक सामने रखूँगा |

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service