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"अपमान "

'जल्दी से आ जा मोनू ,खाना गरम है,खा लें,सबके साथ ।
क्या जल्दी है ,माँ खाना खाना लगा रखा है ?
आते साथ चुपचाप बैठा देख माँ से रहा ना गया।
हाथ धोकर आजा बेटा, फिर खाना खाने बैठ।
जितना तुझे ज़रूरत हो उतना ही लेना,छोड़ना मत ।माँ ने लाड़ले को समझाना चाहा ।
'अब पेट कोई कमरा नही है खाता जाऊँगा ,थोड़ा छूट गया तो क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
ये अन्नदेव का अपमान है बेटा ।
वो कैसे ?जिस दिन तुम्है ग़ुस्सा आ जाता है,और उस दिन तुम खाना नही खाते तब ये संतुलन और हिसाब बराबर हो जाता है ।
और दादा जी जो जरा सी देर होने पर थाली फेंक देते है तब ?
तुम एेसा नही कर सकते क्योंकि बडे गल्ती करते है तो हमें उनकी ग़लती से सबक़ सीखना चाहिये ।
तनिक भी देर ना लगायी बेटे ने ,माँ के चरण छू लिये ।
'माँ सचमुच भगवान होती है।'

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by babitagupta on May 5, 2018 at 5:48pm

बच्चो सही सीख देती अति सुंदर प्रस्तुति,बधाई हो.

Comment by TEJ VEER SINGH on September 13, 2016 at 1:22pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नीता जी।शनदार और संदेशपरक लघुकथा।

Comment by Sushil Sarna on September 13, 2016 at 12:36pm

आदरणीया नीता जी सुंदर और संदेशात्मक लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई  स्वीकार करें। 

Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 11:46am
मोहतरमा नीता कसार जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,लेकिन कसी हुई नहीं है,बधाई स्वीकार हो इस प्रस्तुति पर ।

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