For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पत्थरों की नोक से घायल करें उगता सवेरा ( नव गीत 'राज ')

किश्तियों का छोड़ चप्पू

रौंदते पगडंडियों को

पत्थरों की नोक से

 घायल करें उगता सवेरा

 

आग में लिपटे हुए हैं

पाखियों के आज डैने

करगसों  के हाथ में हैं

लपलपाती  लालटेनें

कोठरी में बंद बैठी

ख्वाहिशों की आज मन्नत

फाड़ कर बुक्का कहीं पे

रो रही है देख जन्नत

जुगनुओं की अस्थियों को

ढो रहा काला अँधेरा

 

घाटियों की धमनियों से

रिस रहा है लाल पानी

जिस्म में छाले पड़े हैं

कोढ़ में लिपटी जवानी

मौत के साए उठा के

पूँछ पीछे भागते हैं

सी रहे हैं जो कफन को

सिर्फ दर्जी जागते हैं

उललुओं का हर शज़र की

शाख़ पर बेख़ौफ़  डेरा

 

धँस गई धर्मान्धता में

एतिहासिक भीत निर्मित

वादियों में हो रहे हैं

खंडहरों के गीत चर्चित

दांत अपने जीभ अपनी

वर्जनाएँ  हँस रही हैं  

सरहदों की मुट्ठियाँ

बदनामियों को कस रही हैं  

देख धूमिल रंग सारे ठोकता माथा चितेरा

पत्थरों की नोक से घायल करें उगता सवेरा

 

मौलिक एवं अप्रकाशित  

Views: 1145

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 3:01pm

आदरनीया राजेश जी , मै इतीनी बड़ी बात कहने के योग्य खुद को नही मानता , लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि , अगर क्षेत्रिय भाषा कके शब्दों का उपयोग करें  तो उसे लिख दिया करें और अर्थ भी दे दें ताकि पाठक को समझने मे आसानी हो ।

इन शब्दों की स्वीकार्यता के विषय मे गुणि जन ही कह सकते हैं ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 6, 2016 at 2:25pm

आद० गिरिराज जी, आपने जिन दो शब्दों की बात की है आपकी बात सही है दरअसल गिद्ध के लिए  करगस शब्द होता है जिसे हमारे यहाँ देशज रूप में खरगस बोलते हैं उसी तरह लालटेन लेम्प को कहते हैं जिसे हमारे यहाँ लेंटेन भी  बोलते हैं मैंने जैसे हमारे यहाँ बोलते हैं हूबहू वैसे ही शब्द रक्खे हैं |उल्लुओं की बात भी सही है इस पंक्ति में ही संशोधन कर रही हूँ अपनी मूल पोस्ट में कर चुकी हूँ जैसे ---उल्लुओं का हर शज़र की शाख़ पर  बेखौफ़ डेरा | आपका बहुत बहुत  शुक्रिया यदि खरगस और लेंटेने ठीक  नहीं लग  रहे तो उनके मूल  रूप में संशोधित कर सकती हूँ आप परामर्श दें | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 11:55am

आदरनीया , ये दो शब्द मेरी जानकारी में नहीं है , हो सकता है ये सहीं ही हों --खरगसों और लेंटेनें ( मै इनका अर्थ ही नही जानता, हिन्दी डिक्सनरी मे भी नही मिले ),  तीसरा शब्द उल्लुओं होना चाहिये ऐसा मेरा अन्दाज़ा है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 6, 2016 at 11:20am

आद० गिरिराज जी,आपको नवगीत पसंद आया आपका दिल से बहुत बहुत आभार | आदरणीय जानबूझ कर तो ऐसा नही किया अनजाने में हो गया हो तो उसको आप अवश्य बताएं संभव हो सका तो उसे दुरुस्त करने का पूरा प्रयास करुँगी सादर | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 9:55am

आदरनीया राजेश जी , सुनदर  ओज पूर्न  नवगीत के लिये हार्दिक बधाइयाँ । आज के काश्मीर को पूर्णतया बयाँ करने मे सक्षम है नवगीत ।

आदरनीय दो तीन स्थान पर शब्दों की मूल वर्तनी से समझौता किया लगता है , या फिर मेरी ही अज्ञानता हो ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 5, 2016 at 7:18pm

आद० रवि भैया,प्रस्तुति पर आपका आगमन और सराहना ने मुझे अपने लेखन कर्म के प्रति आश्वस्त किया आपको रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आपने सही कहा का की आ मात्रा को गिराने की मजबूरी थी आपका दिल से बहुत- बहुत आभार | 

Comment by Ravi Shukla on September 5, 2016 at 5:21am
आदरणीय राजेश दीदी
वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर गीत लिखा है आपने आनद आ गया जहाँ कथ्य की गंभीरता और नए नए बिम्ब है वही इसके खूबसूरत प्रवाह ने मन मोह लिया ।जुगनुओं की अस्थियो को ढो रहा कल् अँधेरा बहुत खूब हृदय से इस गीत के लिए बधाई स्वीकार कीजिए
पूरे गीत में बेखौफ उल्लूओं का डेरा में का की मात्रा गिरा कर पढ़नी पड़ी है । इस समृद्ध कथ्य के नवगीत के लिए ढेर सारी बधाई। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2016 at 8:50pm

आद० शेख़ उस्मानी जी,नवगीत पर आपकी समीक्षा से अभिभूत हूँ  मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया |दिल से बहुत बहुत आभार आपका |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 4, 2016 at 8:34pm
बोलते, कराहते, चीखते से आह्वान करते शब्दों से रचित नवगीत में वर्तमान परिदृश्य को बेहतरीन भावपूर्ण तरीक़े से शाब्दिक किया है आपने। सादर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ आदरणीया राजेश कुमारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2016 at 8:19pm

आपने ये जानकारी साझा की भाई जी, आपका  बहुत- बहुत  शुक्रिया | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
20 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service