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वह प्रीत की फसल उगाती है/ कविता

मेरा निश्छल मन
किसी से बैर
या शत्रुता नहीं
पालता है।

वह पालता है
प्रीत की सघनता को
वो बहता रहता है
भाव की अविचलता में
उसे फुरसत नहीं
प्रेम में बहते रहने से
उसकी दृष्टि हटती नहीं
अपने प्रियतम से।

हृदय की गहन तलहटी में
उनकी गुंजों में डूबी हुई
भोर की दूर्बा-सी
ओस को आँखों में सजाये
गुँथा करती है
प्रतिदिन जयमाल
मन के फूलों से।

कोकिल-सी कूक लिये
अंधकार को बेधा करती है

तरंगित मन के ज्वारों को
फुरसत नहीं मिलती
देखने की
दुनिया के जुआघर
और जुआरियों को।

चौपड़ों की चालों से इतर
वह मन मग्न
रात में भी भोर-सी
अंगराई लेती रहती है
वह जीवन की तान में
अपने मन की गान में
मग्न हो,खुद को बोती रहती है
सिर्फ प्रीत की फसल उगाती है
वह प्रीत की फसल उगाती है।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Ram Ashery on September 16, 2016 at 3:56pm

कांता मैडम जी अपने अपने मन की व्यथा को बड़े ही मार्मिक ढंग से व्यक्त किया है आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो 

Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:24pm
आपका रचना पर उपस्थिती रचनाकर्म को सफल बना जाता है। आभार आपका हृदय से।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:23pm
रचना के भाव पर आश्वस्ति जताने के लिये आभारी हूूँ आपका आदरणीय ब्रजेश जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:21pm
रचना पसंदगी व प्रोत्साहन के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीय अशोक जी।
Comment by pratibha pande on August 7, 2016 at 1:00pm

तरंगित मन के ज्वारों को
फुरसत नहीं मिलती
देखने की
दुनिया के जुआघर
और जुआरियों को..  .गहन भावों को  सुन्दर शब्द मिले हैं आपकी इस रचना में ,  हार्दिक बधाई प्रेषित है इस रचना पर आदरणीया कांता जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2016 at 9:50pm

सुन्दरतम भाव वाह....हार्दिक बधाई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2016 at 10:56am

वह पालता है
प्रीत की सघनता को
वो बहता रहता है
भाव की अविचलता में
उसे फुरसत नहीं
प्रेम में बहते रहने से
उसकी दृष्टि हटती नहीं
अपने प्रियतम से।..............वाह ! मन के सुन्दरतम भावों को प्रदर्शित करती सुन्दर रचना. बहुत-बहुत बधाई आदरणीया कान्ता रॉय जी. सादर.

Comment by Sushil Sarna on August 4, 2016 at 1:41pm

आदरणीया कान्ता रॉय जी मेरे कहे को मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by kanta roy on August 4, 2016 at 11:53am
आभार आपका आदरणीय सतविन्द्र जी,रचना को मान देने के लिये।
Comment by kanta roy on August 4, 2016 at 11:50am
हृदय से आभार आपका आदरणीय सुशील जी रचनापर आकर मेरा मनोबल बढ़ाने के लिये। आपके द्वारा सुझाया हुआ मार्गदर्शन सही हुआ है। वाकई मैने यह गलती की है। सुधार का प्रयास करती हूूँ।

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