For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक तुम्हारे होने से / कविता

साक्षी है सिंधू मन मेरा एक तुम्हारे होने से
हृदय की भित्तियों में चित्तियाँ तुम्हारे होने से

ऊँची काली दीवारें थाह पता कोई ना जाने
जीने -मरने में भेद मिटा संत्रासों के ढोने से
हृदय की भित्तियों में चित्तियाँ तुम्हारे होने से .......

उलट-पुलट है यह जग सारा पुरवाई भी व्याकुल है
लहरों की उछ्वासित साँसों को क्या मलाल अब खोने से
हृदय की भित्तियों में चित्तियाँ तुम्हारे होने से ........

लय की अनंतता में अंतर्मन का रमकर रमना
नित्य-निरंतर उसके गति में अविचलता के होने से
हृदय की भित्तियों में चित्तियाँ तुम्हारे होने से .........

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1104

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:30pm
आभार आपका हृदय से आदरणीया अल्का जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:29pm
आदरणीय विजय जी ,हमेशा से आपको पढ़ती आई हूूँ मंच पर। संवेदनाओं का निर्वाह आपसे बेहतर शायद ही कोई कर सके। आपका रचना पर उपस्थिती मेरे मनोबल को बढ़ा गया है।आभारी हूूँ।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:26pm
आभारी हूूँ आपकी आदरणीय आशीष जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:25pm
रचना पसंदगी के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीय सतविन्द्र जी।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 3, 2016 at 4:21pm

भाव पूर्ण सुंदर रचना

Comment by vijay nikore on August 22, 2016 at 3:56pm

अति सुन्दर, अति मनमोहक रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया कांता जी

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 8, 2016 at 11:19am
भाव पूर्ण सुंदर रचना
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 4, 2016 at 6:37pm
बहुत् सुन्दर भावाभिव्यक्ति।नमन वन्दनीया।
Comment by kanta roy on August 4, 2016 at 12:11pm
रचना को मान देने के लिये आभार आपका आदरणीय पवन जी।
Comment by kanta roy on August 4, 2016 at 12:10pm
आभार आपका दिल से आदरणीया कल्पना जी रचना पसंदगी के लिये।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
1 minute ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service