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हुनरबाज [लघु कथा ]

दर्जी रमेश के एक कमरे के घर में आज उत्साह पसरा हुआ था I टी वी के एक कार्यक्रम में बेटे राजू का गाना आनेवाला था I

“काकी टी वी नहीं खोला i राजू भैया का गाना शुरू हो गया है “  पडौस  की लड़की  हाँफती  अन्दर आई I

“सुबह से इंतज़ार था और इनकी मशीन की खट खट में समय का ध्यान नहीं रहा, चल लगा  दे जल्दी से “I  बेटे को टी वी में देखने को बेताब कांता , टी वी के एकदम पास बैठ गई  I

टी वी खोलने तक गाना हो चुका था I तालियों की गडगडाहट के बीच राजू को देख उसकी आँखें भर आईं Iमाथे के दोनों ओर उँगलियाँ चटका दीं उसने I

 निर्णायक राजू से बातें कर रहे थे I  अचानक कांता के चेहरे के भाव बदल गए ,आँखें अविश्वास से चौड़ी हो गईं I

“ले आ गया मै भी  , कैसा गाया अपने राजू ने ?” रमेश  पास आ गया था I

“ये राजू क्या कह रहा है जी i” कांता की आवाज भर्राई हुई थी  “ घर में तंगी थी , पापा जी चाहते थे कि मै उनकी दर्जी की दुकान पर बैठूँ , बड़ी मुश्किल से पैसे बचाकर पापा की मर्जी के खिलाफ संगीत सीखा ..क्या ..क्या  बोल रहा है ये सब i” कांता रोने लगी थी I

“रोना बंद कर तो मै भी कुछ सुन लूंI “

“ क्या सुनना है अब i  आप दिन रात खटते रहे पर उसके शौक को नहीं रोका ,संगीत सीखने भेजा I पढाई को लेकर भी कभी कुछ नहीं कहा I अभी यहाँ भेजने के लिए भी  मैंने अपनी चूड़ी...ये...ये  झूठ क्यों बोल रहा है जी “I पति के हाथ को पकड़ लिया उसने I

“अरे रो मत i”  रमेश ने पत्नी के कंधे पर धीरे से  हाथ रख दिया  “ देख उस लेडीज़ की कैसे आँखें भर आईं हैं ,और वो आदमी कैसे गले लगा कर पीठ थपथपा रहा है तेरे बेटे की I गाने के हुनर का तो पता नहीं, पर  ये तो मानना ही पड़ेगा कि बेटा अपना हुनरबाज है” I

 

मौलिक व् अप्रकाशित

 

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Comment by pratibha pande on July 24, 2016 at 5:43pm

आपको रचना पसंद आई , मेरा लिखना सार्थक हुआ आपका हार्दिक आभार आदरणीया नयना जी 

Comment by pratibha pande on July 24, 2016 at 5:39pm

 आपने रचना पर आकर इसके मर्म का अनुमोदन किया व् उत्साहवर्धन किया आपका हार्दिक आभार आदरणीय वीरेन्द्र वीर मेहता जी 

Comment by pratibha pande on July 24, 2016 at 5:35pm

रचना पर आकर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by pratibha pande on July 24, 2016 at 5:33pm

रचना के शिल्प और मर्म पर आपका अनुमोदन मिला ,मेरा लिखना सार्थक हुआ ,आपका हार्दिक आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी 

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 24, 2016 at 1:58pm

आ.प्रतिभा दीदी  बहूत ही बढिया लघुकथा हुई है आपकी.आजकल समाज मे अवसरवादिता का इतना बोलबाला है कि रिश्तो की अहमियत का कोई मोल नहीं रह गया.   वर्तमान का उम्दा  कथानक चुना आपने और बखूबी निभाया भी.दिल से बधाई आपको 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 24, 2016 at 12:42pm
सामान्य विषयो से हटकर एक नए विषय पर चली कलम ने जहां टी आर पी और वोटिंग जैसे बिन्दुओ को छुआ है वहीँ मानव की मतलबपरस्त प्रवर्ति को भी बेटे के जरिये अप्रत्यक्ष रूप में संकेतित किया है। आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सटीक शीर्षक की इस बेहतरीन रचना के लिए सादर बधाई स्वीकार कीजिये।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 24, 2016 at 12:26pm
आदरणीय रवि जी की टिप्पणी महत्वपूर्ण है। अवसरवादिता/व्यावहारिकता/व्यापारिकता का यह रूप दर्शकों को समझ लेना चाहिए। हमारे लघुकथा लेखक साथियों ने ऐसे मुद्दे उठाते हुए सार्थक सृजन किये हैं। इसी क्रम में बढ़िया रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।
Comment by Ravi Prabhakar on July 24, 2016 at 12:08pm

वाह ! बहुत ही उम्‍दा और सधी लघुकथा रची है आपने आदरणीय प्रतिभा जी । टीआरपी बढ़ाने के चक्‍कर में आयोजकों को ऐसे ड्रामें करने ही पड़ते है। या फिर वोटिंग में अधिक सहानुभूति उसी प्रतियोगी कोमिलती है जिसकी पृष्‍ठभूमि दर्शकों को भावुक कर सके । लघुकथा का शीर्षक 'हुनरबाज' स्‍टीक व सधा हुआ है। शुभकामनाएं स्‍वीकार करें।

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