For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल खूबरू इक लिखूँ तुझ ग़ज़ल पर--------पंकज

122 122 122 122

इज़ाज़त ये तुमसे, है माँगे सुखनवर।
ग़ज़ल खूबरू इक, लिखे तुझ ग़ज़ल पर।।

कहो तो लिखे झील, आँखों को तेरी।
लिखे, चाहता हुस्न, का इक समंदर।।

गज़ब की हो तुम तो, विधाता की रचना।
बहुत खूबरू ज्यूँ, हिमालय का मंजर।।

ये होंठों की मुस्कान, है क़ातिलाना।
कलम लिख रहा है, इसे ज़िंदा खंज़र।।

है जो मरमऱी सा, बदन ये तुम्हारा।
सजा कर बसाया, इसे मन के अंदर।।

मौलिक-अप्रकाशित

(आदरणीय समर सर की इस्लाह पर सम्पादित व संशोधित)

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 17, 2016 at 4:01pm
आदरणीय अशोक सर बहुत बहुत आभार,सुझाव स्वीकार्य है
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 17, 2016 at 10:19am

आदरणीय पंकज कुमार मिश्र जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल कही है आदरणीय समर कबीर साहब ने इशारा किया ही है.एक जगह और भी देखें "कलम लिख रहा है' रहा या रही देख लें. सादर.

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 16, 2016 at 5:53pm
आदरणीय जयनीत भाई सादर आभार
Comment by जयनित कुमार मेहता on July 16, 2016 at 5:51pm
खूबसूरत ग़ज़ल है आदरणीय पंकज जी।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 16, 2016 at 5:51pm
आदरणीय समर कबीर सर सादर प्रणाम, ग़ज़ल को आशीर्वाद प्रदान करने के लिए बहुत बहुत आभार। अभ्यास करके इस कमी को दूर करने की कोशिश करूँगा। सादर
Comment by Samar kabeer on July 16, 2016 at 5:17pm
जनाब पंकज कुमार मिश्रा जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
कुछ अशआर में अल्फ़ाज़ की बंदिश चुस्त नहीं है, ग़ज़ल कहते वक़्त इसका ख़ास ध्यान रखें,दूसरे शैर के सानी मिसरे में "हुश्न" को 'हुस्न'कर लें ।

आख़री शैर का ऊला मिसरा साफ नहीं है, मुनासिब समझें तो इस तरह कर लें :-
"है जो मरमरी सा बदन ये तूम्हारा"
मरमरी शब्द में री के साथ बिंदी भी लगाएं,बच्चे से लिखा नहीं जा रहा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service