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दो कोड़ी की औक़ात (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

बहुत तेज़ धूप में राहगीर ज़ल्दबाज़ी में सड़क के विभाजक (डिवाइडर) पर चढ़कर उस पार जा रहा था। तभी उसकी नज़र डिवाइडर पर बैठे एक मरियल से भिखारी पर पड़ी, जो बार-बार अपने खाली कटोरे और चप्पलों को चूमकर माथे से लगा रहा था। उस राहगीर से रहा नहीं गया। उसने उस भिखारी से वह सब करने की वज़ह पूछी।

उसने अपने पेट पर हाथ रखकर कहा, "खाली कटोरा, खाली पेट; आज कुछ नहीं मिला हम दोनों को, देख! भूख का दर्द बांट रहे हैं, भैया!"

"लेकिन तुम चप्पलों को भी चूमकर माथे से क्यों लगा रहे हो?" - राहगीर ने पूछा।

भिखारी ने चप्पलों पर माथा टेक कर कहा- "जिस ने हमारी तकलीफ़ को महसूस किया, वह दोबारा नहीं दिखाई दिया, सो उसकी दी हुई चप्पलों में उसे देख लेता हूँ, भैया!"- कहकर वह अपने तलवे सहलाने लगा।

राहगीर ने तुरंत अपना पर्स खोलकर नोटों के बीच में से दो रुपये का सिक्का निकाला और उस भिखारी के कटोरे में सिक्का डालकर जाने लगा।

मुट्ठी बंद करते हुए भिखारी ने धीरे से कहा-"दो कोड़ी की औक़ात!"

कुछ सुनकर राहगीर ने पलटकर पूछा- "कुछ कहा तुमने?"

"कुछ नहीं भैया, बस ये कहा कि सड़क ऐसे पार मत किया करो ज़ल्दबाज़ी में!" यह कहकर वह उसके सूट-बूट और बैग को निहारने लगा।

[मौलिक व अप्रकाशित]

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Comment by pratibha pande on July 6, 2016 at 7:20pm

सुन्दर रचना सुगढ़ित शिल्प में ,  हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 6, 2016 at 4:46pm
रचना पर समय देकर अनुमोदन व सराहना करने के लिए व अपने विचार साझा करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी, आदरणीय महेन्द्र कुमार जी व आदरणीय सुशील सरना जी। पाठकगण कृपया 'कोड़ी' के स्थान पर "कौड़ी" पढ़ियेगा।
Comment by Sushil Sarna on July 6, 2016 at 4:28pm

अादरणीय उस्मानी साहिब हकीकत को बयां करती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Mahendra Kumar on July 6, 2016 at 11:33am
अक्सर निचले पायदान पे खड़ा व्यक्ति ऊपर खड़े व्यक्ति की हक़ीक़त को आसानी से पहचान लेता है। इस वास्तविकता को बयां करती लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी! मेरे हिसाब कोड़ी की जगह कौड़ी होगा। आप देख लीजिएगा, सादर!
Comment by Rajendra kumar dubey on July 6, 2016 at 11:22am
आदरणीय उस्मानी जी सूटबूट वाले की औकात का आकलन एक भिखारी ही कर सकता हैं बहुत ही बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई।

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