For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है

१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२

नहीं है कोई अगर चितेरा संवरने से फायदा ही क्या है

लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है

कली कली से ये बात करती अरे सखी क्या ये ज़िन्दगानी

नहीं जो भंवरे नहीं जो तितली निखरने से फायदा ही क्या है

चलो कदम से कदम मिलाकर  हसीं अगर जिन्दगी बनानी

ये बात हारों के मोती समझे बिखरने से फायदा ही क्या है

कलम तुम्हारी है खूब लिखती दुआ मेरी भी है खूब लिख्खे

ख्याल दिल से निकाल दो पर कि पढने से फायदा ही क्या है

ये इल्म गहरा समन्दरों सा मगर हुआ गर गुमान तुमको

गुमान कर तुम कहोगे खुद कल ये करने से फायदा ही क्या है

जुदा है मंजिल जुदा हैं राहें सभी चले दिल में हौसला ले

सही हूँ बस मैं , गलत जमाना समझने से फायदा ही क्या है

E31  मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 676

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 5, 2016 at 5:39pm
ये ग़ज़ल-गंगा मन को शीतलता प्रदान कर गयी, ये शेर रुपी जल अंजुरी में ले लिया है बस-
बहुत बहुत बधाई।
ये इल्म गहरा समन्दरों सा मगर हुआ गर गुमान तुमको
गुमान कर तुम कहोगे खुद कल ये करने से फायदा ही क्या है
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 5, 2016 at 12:51pm

आदरणीया राहिला जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल शुक्रगुजार हूँ ये शेर आपको पसंद आया तो मेरा लिखना भी सार्थक हुआ सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Rahila on July 5, 2016 at 12:30pm
"नहीं है कोई अगर चितेरा संवरने से फायदा ही क्या है
लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है"ये शेर तो कमाल का हुआ। पूरी ग़ज़ल ही उम्दा बन पड़ी।खूब बधाई।सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 5, 2016 at 12:09pm

भाई जयनित जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मेरा लिख सार्थक हुआ ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद स्वीकार करें सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 4:44pm

आदरणीय गिरिराज भाई साब ..आपके मार्गदर्शन और रचना धर्मिता को प्रोत्साहित करने वाली प्रतिक्रियाओं से मुझे लाभ मिलता है ..रचना धर्मिता की नव ऊर्जा मिलती है ..प्रयास तो मैं सतत कर रहा हूँ अभी बहर को ही समझ रहा हूँ और साथ साथ कहन पर भी चिंतन करने का प्रयास कर रहा हूँ ..अच्छी रचना को पढ़ते ही मुह से अनायास ही निकल पड़ता है क्या कमाल की सोच है ..शब्द सभी के वही हैं लेकिंग शब्दों की स्थति भाव प्रवणता को और प्रखर कर देती है ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया और उत्साह वर्धन के लिए शुक्रगुजार हूँ सादर प्रणाम के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 3:28pm

आदरणीय आशुतोष भाई , कठिन बहर को आपने अच्छे से निभाया है , ग़ज़ल अच्छी हुई है , कहन मे ज़रूर काम और किया जासकता था, ये बात वैसे मुझे मिलाकर सभी के लिये सही है ।बहर के बाद कहन पर ही काम करना होता है । चाहे मैं हूँ या आप । आपको इस गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 3:06pm

आदरणीय रवि सर ..आपकी प्रतिक्रिया से मेरा हौसला बढ़ा है ..आप सब के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से नूतन लिखने का साहस और ऊर्जा मिलती है ..आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे इस कामना के साथ सादर प्रणाम केसाथ 

Comment by Ravi Shukla on July 4, 2016 at 1:32pm

आदरणीय आशुतोष जी बढि़या गजल कही है।  इसके लिये बधाई स्‍वीकार करें जयनित जी की बात से इतना तो सहमत है कि बड़ी बहर की गजलों में कुछ शब्‍द पचाने की विवशता रहती है किन्‍तु इस बात से सहमत नहीं है कि छोटी बहर में गजल कहना आसान है छोटी बरहर के सीमित दायरे में श्‍ाब्‍दों को उनके पूरे अर्थों के साथ साध लेना भी एक मुश्किल काम है । सादर 

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 3, 2016 at 9:56pm
आदरणीय आशुतोष जी,
छोटी बहरों में प्रभावशाली ग़ज़ल कहना अपेक्षाकृत आसान होता है, जबकि बड़ी बहर की ग़ज़लों में कुछ निरर्थक शब्द भी पचाने की विवशता होती है।

इस सन्दर्भ में आपकी ये ग़ज़ल काफी हद तक सफल हुई है।
इसके लिए आप हार्दिक बधाई के पात्र हैं।
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
18 seconds ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
3 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
23 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
27 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
10 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service