For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये

२१२२  ११२२   ११२२   २१२  

आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये 

क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये 

हुक्मरानों ने खता की बच्चों से बचपन छिना 

अब्बू ना लौटेंगे चाहे लाख आंसू पोंछिये 

अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर 

एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये 

दिल  हमीदों का न तोड़ो गर है कोई सिरफिरा 

मौत हिन्दी की हुई मत हिन्दू मुस्लिम बोलिये 

जो बचाने में लगा है इस वतन की आबरू 

हम बिरोधी उसके हैं या नीतियों के सोचिये 

जिस सपोले को पिलाकर दूध जहरीला किया 

है उठाये फन खड़ा तो आँख यूं मत फेरिये 

हम है हिन्दू वो मुस्लिम ये पता सदियों से था 

पर हमें दुश्मन बताकर रोटियाँ मन सेंकिए 

जिस वतन से आप खुद है आपकी ये आबरू 

क्या यही सीखा है पीकर दूध माँ को बेंचिए 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 823

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by maharshi tripathi on June 16, 2016 at 10:11pm
बहूत बेहतरीन गज़ल,दाद कूबूले,सर !!!
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 15, 2016 at 10:47pm

अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर
एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये....वाह आदरणीय वाह बहुत ही खूबसूरत

Comment by kanta roy on June 15, 2016 at 9:09pm

आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये 

क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये ---बहुत  खूब कही  है  आपने  आदरणीय डॉ आशुतोष जी .बधाई 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 15, 2016 at 5:04pm

आदरणीय श्याम नारायण जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on June 15, 2016 at 3:07pm

जिस वतन से आप खुद है आपकी ये आबरू 

क्या यही सीखा है पीकर दूध माँ को बेंचिए 

इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें   आदरणीय | सादर 
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 15, 2016 at 12:46pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ..आपके मशविरे पर अमल करूगा बह्र गलती से गलत हो गयी उसमे सुधार कर लूँगा सादर प्रणाम के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 11:38am

आदरनीय आशुतोष भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

ऊपर बह्र आपने ग़लत लिख दी है , सुधार लीजियेगा ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 14, 2016 at 10:53am

आदरणीय तेज वीर सर ..रचना पर आपकी प्रतिकिर्या के लिए हृदय से आभारी हूँ ..भूल बश हुयी गलती को मैं सुधार लूँगा /

Comment by TEJ VEER SINGH on June 13, 2016 at 6:22pm

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ आशुतोष जी! बेहतरीन गज़ल!

हम है हिन्दू वो मुस्लिम ये पता सदियों से था 

पर हमें दुश्मन बताकर रोटियाँ मन सेंकिए!

 मैंने जो शेर शेयर किया है उसमें "रोटियाँ मत सेकिये" होगा! गल्ती से मन लिखने में आ गया है!

Comment by Mahendra Kumar on June 13, 2016 at 4:29pm
अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर
एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये
...उम्दा ग़ज़ल!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
49 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
10 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service